प्रख्यात लेखक और विचारक रमेश चंद्र के ”कीबोर्ड”से :

बुद्धिजीवी तथा प्रबुद्ध वर्ग

‘बुद्धिजीवी’ तथा ‘प्रबुद्ध'(प्रज्ञावान या विवेकशील या Intellectual)
इन शब्दों का प्रयोग करते समय हम सामान्यतः इनके वास्तविक अर्थ पर ध्यान नहीं देते और फिर हम जो कहना चाहते हैं,उसका पूरा का पूरा मतलब ही बदल जाता है।
वस्तुत: ‘बुद्धिजीवी’ का मतलब है वह व्यक्ति जो अपनी आजीविका बौद्धिक कार्य करके अर्जित करता है, जैसे स्कूल टीचर, सरकारी दफ्तरों के क्लर्क तथा अधिकारी, गांव तथा शहर का ज्योतिषी, वैद्य,डाक्टर इत्यादि।इसका मतलब यह है कि बौद्धिक श्रम करके आजीविका अर्जित करने वाले ‘बुद्धिजीवी वर्ग’ के व्यक्तियों के लिए स्कूल तथा कालेज की शिक्षा और उसकी डिग्री हासिल करना जरूरी है।
लेकिन समाज में एक दूसरा वर्ग भी होता है जिसे हम ‘प्रबुद्ध वर्ग'(Intellectual class) कहकर संबोधित करते हैं। इस वर्ग के व्यक्तियों के लिए ‘Formal Academic Education’ अनिवार्य नहीं होती। यह समाज में व्यक्तियों का वह समूह है जो प्रज्ञाशील होने की वजह से दूरद्रष्टा होता है तथा समाज को सही और नई राह दिखाने में प्रमुख भूमिका निभाता है। प्राचीन काल में यही वर्ग राजाओं, सरदारों,सामंतो,गांव के जमींदारों के मुख्य सलाहकार की भूमिका निभाता था।
राज्य तथा समाज के लिए नीतियों के निर्माण में भी इसी वर्ग की सबसे प्रमुख भूमिका होती थी। इसी वर्ग के व्यक्ति ही वर्तमान लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मंत्री तथा प्रशासन (व्यूरोक्रेसी) के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होकर देश और समाज का संचालन करते हैं, विभिन्न प्रकार की नीतियों तथा कानूनों का निर्माण करते हैं।
वैसे ‘व्यूरोक्रेसी’ शुद्ध रूप में अकादमिक शिक्षा प्राप्त बौद्धिक श्रम कर अपनी आजीविका कमाने वाले श्रमिकों (Labours) का ही वर्ग है। यह वर्ग भी मौलिक रूप से श्रमिक ही है जिसमें शारीरिक श्रम के स्थान पर बौद्धिक श्रम की प्रधानता है, और जैसे-जैसे व्यक्ति व्यूरोक्रेसी में निचले स्तर (ग्रुप ‘डी’) से ऊपरी स्तर
(ग्रुप ‘ए’) की ओर अग्रसर होता है, उसके कार्य की प्रकृति में गुणात्मक (Qualitative) परिवर्तन होता जाता है। उसका कार्य धीरे-धीरे ‘श्रम प्रधान'(Labour oriented) से नीति प्रधान (Policy Oriented) होता जाता है। टाप व्यूरोक्रेट्स तथा सरकार में पदाशीन टाप पोलिटीशियन्स( Policy Makers) के बीच का अंतर काफी कम होता है। एक हल्की एवं पतली सी अस्मिता की पर्त उन्हें अलग करती है। यह भाव उन्हें अलग करता है कि,एक सरकारी नौकर है और दूसरा जनता की तरफ से संविधान और चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से उसके ऊपर बैठाया गया उसका बास(Boss) है।
एक क्लासिकल उदाहरण के रूप में हम उन तमाम समाज सुधारकों , जैसे संत कबीर,संत तुकाराम,संत रविदास, गुरु नानकदेव, महात्मा ज्योतिबा फुले इत्यादि को ले सकते हैं जो प्रबुद्ध व्यक्तियों की सबसे उच्च श्रेणी में आते हैं।
आजकल के उच्च स्तर के राजनीतिज्ञ, विचारक,लेखक, अर्थशास्त्री, कानून वेत्ता, पत्रकार, अन्य विभिन्न विषयों के विद्वान एवं विशेषज्ञ, धर्म, अध्यात्म तथा संस्कृति के क्षेत्र के उच्चस्तीय नेता प्रबुद्ध वर्ग (Intellectual Class) की उच्च श्रेणी का निर्माण करते हैं।
यहां एक बात विशेष रूप से ध्यान देने लायक है कि एकेडमिक शिक्षा प्राप्त वर्ग में ही ज्यादा से ज्यादा प्रबुद्ध व्यक्तियों को आसानी से पैदा करने की क्षमता होती है। इसीलिए हम देखते हैं कि भारत में जो एक जातिप्रधान देश है, एक या कुछ जाति विशेष के सदस्यों ने यहां की व्यूरोक्रेसी, सरकार, संसद और विधानसभाओं, न्यायपालिका तथा मीडिया इत्यादि पर एकतरफा आधिपत्य जमा रखा है। देश की अन्य बहुसंख्यक जातियां जो शैक्षिक और सामाजिक दोनों ही रूप में पिछड़ी हुई हैं, का लोकतंत्र की विभिन्न संस्थाओं में आरक्षण व्यवस्था(सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर) लागू होने के 70 सालों बाद भी प्रतिनिधित्व बिल्कुल असंतोषजनक है।
हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि ऐसा क्यों है?

यदि हम सरसरी तौर पर इस पर विचार करें तो पाते हैं कि देश की लगभग 85% जनसंख्या में प्राथमिक तथा उच्च शिक्षित व्यक्तियों का अत्यंत अभाव है। इसके अलावा इस जनसमूह की आर्थिक स्थिति भी काफी दयनीय है तथा इस वर्ग में बौद्धिक श्रमिकों (बुद्धिजीवी वर्ग) की अपेक्षा शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिकों जैसे- छोटे-बड़े कृषकों, कृषि मजदूरों, कारीगरों, कान्स्ट्रक्सन, खनन, कल-कारखानों तथा यातायात एवं परिवहन के क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिक एवं कारीगरों की संख्या सर्वाधिक है।
इस जनसमुदाय में शारीरिक श्रमप्रधान आजीविका के साधन की अधिकता,आर्थिक कमजोरी, प्राथमिक तथा उच्च शिक्षा की कमी तथा उसकी निम्न गुणवत्ता, सामाजिक पिछड़ापन एवं कुरीतियां, अपने वास्तविक इतिहास तथा महापुरुषों की जानकारी का अभाव, साहस एवं मनोबल का निम्न स्तर वे कुछ प्रमुख कारण हैं, जो प्रबुद्ध वर्ग के जन्म और वृद्धि में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करते हैं। इसी की वजह से राजनीति , समाज, व्यापार-वाणिज्य तथा जीवन के अन्य क्षेत्रों में इस वर्ग से उत्कृष्ट कोटि का नेतृत्व पैदा नहीं हो पाता। ….और यदि कुछ अच्छे किस्म के नेतृत्व पैदा भी होते हैं तो वे 15% वाली जनसंख्या वाले शासक वर्ग द्वारा ‘ब्रेन ड्रेन’ तथा ‘आपरेशन विभीषण’ जैसी नीतियों के माध्यम से अपने पाले में मिला लिये जाते हैं।
अब विचार करना चाहिए कि उत्पादित संसाधनों की सुरक्षा करते हुए अपने कल्याण तथा मुक्त्ति का मार्ग कैसे प्रशस्त करें।