प्रवासी श्रमिकों के लिए हो कृषि आधारित रोजगार का सृजन
डाॅ. देवेंद्र सिंह
माटी फाउंडेशन
संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश
किसी भी देश की तरक्की में किसानों, मज़दूरों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। देश की लगभग 56 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि आधारित कार्यकलापों में संलग्न है। गाँवो में भूमिहीन मजदूरों को वर्ष में कई महिनों तक बेरोजगार रहना पड़ता है। प्रत्येक वर्ष जलवायु परिवर्तन, रोजगार की तलाश, जनसंख्या वृद्धि जैसे अन्य कारक लाखों लोगों को अंतर्राज्यीय पलायन करने को मजबूर करते हैं। गाँव से शहरों में मज़दूरी करने आए ये कामगार घरेलू कार्य, वाहन चालक, टैक्सी चालक, माली, सुरक्षा कर्मी, निर्माण क्षेत्रों, मॉल में, गैर–सरकारी संगठनों में, लोगों का घर बनाने एवं फ़ुटपाथ पर सामान बेचने का काम करते हैं तथा छोटे और मध्यम उद्यमों में सस्ते श्रम प्रदान करके उस राज्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
कोरोना वायरस ने वैश्विक आवादी के गतिविधियों को पूरी तरह प्रभावित किया है। लॉकडाउन के कारणवस आय का कोई साधन नहीं होने से प्रवासी मजदूर अपना जरूरी सामान लेकर, भूख से बेहाल, थके हुए अपने परिवार के साथ पैदल या बस से हजारों किलोमीटर यात्रा करके अपने गाँव की ओर लौटने को मजबूर था। अधिकतर कामगार दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, पश्चिम बंगाल एवं राजस्थान जैसे राज्यों में कार्य करते थे। इस महामारी के दौर में भी किसानों एवं श्रमिकों को कड़ी मेहनत करके लोगों के लिये आनाज, सब्जी, फल एवं दूध आदि का उत्पादन करना पड़ रहा है, परंतु दुर्भाग्यवस आज वही किसान एवं मजदूर अत्याधिक प्रभावित हो रहें हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में लगातार पलायन होता रहा है, लेकिन लॉकडाउन के कारण पुनः उन्हें अपनी माटी की याद आने लगी है। प्रवासी श्रमिको को कोविड-19 महामारी से होने वाली आर्थिक, सामाजिक एवं विभिन्न पहलुओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को ध्यान रखते हुए उन्हें रोजगार की सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है। गाँव में वापस आए श्रमिकों एवं उनके परिवारों को उनकी दक्षता के अनुरूप सरकार ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा, जवाहर ग्राम समृद्धि योजना, राष्ट्रीय खाद्य के लिए कार्य योजना और काम के बदले अनाज योजना आदि विभिन्न योजनाओं के अंर्तगत रोजगार उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिये माटी फाउंडेशन, परशुरामपुर विगत कई वर्षों से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसीत कृषि एवं पशुपालन विकास हेतु विकसित तकनीकियों को किसानों तक पहुंचाने का कार्य रहें हैं। कृषि उन्न्ति के लिए युवा कृषको को बागवानी नर्सरी, पुष्प उत्पादन, बीज उत्पादन, सब्जी उत्पादन, मधुमक्खी पालन, पशुपालन एवं मछली पालन से संबद्धित योजनाओं के बारे में किसान चौपाल व गोष्ठियों के माधय्म से जागरूक किया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन के कारण मनुष्य को भविष्य में कोरोना जैसी अनेकों महामारियों का सामना करना होगा। शारीर की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने के लिये पौष्टिक भोजन की उपलब्धता के लिए नवेता महिला स्वयं सहायता समूह, परशुरामपुर द्वारा जैविक खेती के लिये जैविक खाद का उत्पादन किया जा रहा है। माटी फाउंडेशन के तत्वाधान में ब्लाक नाथनगर के गाँवों में नवेता महिला स्वयं सहायता समूह का गठन कराकर प्रवासी महिला श्रमिकों को न्यूनतम प्रशिक्षण दिलाकर विभिन्न कृषि उत्पादों जैसे- आटा, चावल, तेल, बीजीय मसाले, फलों से बनने वाले विभिन्न सामान, पापड़, बड़ियां, चिप्स एवं आचार आदि के उत्पादन से गँवों में रोजगार सृजन की दिशा में प्रयासरत हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में पयलायन को रोकने के लिये सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से श्रमिकों के बुनियादी जरुरतों और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण के माध्यम से इनका ज्ञानवर्धक, प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन करना होगा तथा छोटे और मध्यम उद्योगों जैसे- ग्रामीण और कुटीर उद्योग, हथकरघा, हस्तशिल्प तथा खाद्य प्रसंस्करण एवं कृषि उद्योगों की स्थापना पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जिससे लोगों को उचित रोजगर का अवसर मिल सके।