बंदर चला शहर की ओर
विमलेश गंगवार एक वरिष्ठ कथाकार हैं जिनके दो उपन्यास और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ।तीसरा उपन्यास शीघ्र प्रकाश्य है ।
लम्बपुच्छ अपनी अपनी योजना बना चुके थे,अब उन्हें अपनी पत्नी लाली से सहमत लेनी थी।रात भर पीपल के पेड़ में बने कोटर (घर) में कुलबुलाते रहे थे। कोटर के चारो ओर घना जं्रगल था झरबेरी थी नदी थी। दूसरे वृक्षों पर तोता,मैना,कोयल,मोर आदि रहते थे। लम्बपुच्छ झरबेरी के बेर खाते और नदी का पानी पीते थे।
लम्बपुच्छ ने शहर घूमने की अपनी योजना लाली को बताई,तो वह दंग रह गई और आश्चर्य से बोली-”हाय अपना घर छोड़ दोगे,यह हरे-भरे खेत,मीठे जामुन प्यारी सहेली हिरिया इन सबको मै कैसे छोड़ पाऊॅगी।मै तो यही रहूॅगी अपने इसी हरियाले जंगल में।“
”बच्चों जैसी बातें करती है तू, मै तेरे बिना शहर नहीं जाऊंगा ।“ लम्बपुच्छ ने अपना निर्णय सुना दिया। उसने लाली को घूमने का लालच दिया।
“अभी तूने यही जंगल देखा है, तूझे शहर घुमाऊॅगा, वहाॅ इंसानों ने ऐसे-ऐसे कलपुर्जे बना लिये है जिनके बटन दबाते ही रात में दिन हो जाता है,दरदराती सर्दी में गर्मी आ जाती है,सुन्दरियाॅ नाचने लगती है,जब तू शहर देखेगी तो भूल जायेगी यह जंगल”………………………समझी।
बन्दर लम्बपुच्छा की बाते सुनकर बॅदरिया लाली सकते में आ गई।वह तुरंत शहर जाने को तैयार हो गई। सास को शहर जाते देख उसकी बहू किन्नी कसमसाई और बोली-“सासू जी मैं भी चलॅुगी शहर”।
बहू का हठ देख लाली चिंतित हो उठी। इतने बडे कोटर की रखवाली कौन करेगा ?घर छोड़ते ही दूसरे बन्दर कब्जा कर लेंगे फिर नदी के इतने पास कोटर उन्हें कभी नसीब नहीं होगा। जंगल के तोता,मैना,हिरन,कौवा,हाथी एवं अन्य बन्दरों को पानी का यह सुख नहीं है।लाली ने लम्बी साॅस ली और बोली-“देख बहू इस बार तू मान जा, सैर करने की तेरी उम्र पड़ी है,तू छोटू के साथ कोटर में ही रह”।
बहू किन्नी ने बात मान ली और जंगल में छलांग लगा दी।वह झरबेरी के झरमुटों में चली गई। पत्ते खड़खड़ाकर शान्त हो गयै।
लम्बपुच्छ और लाली घर से निकलने को तैयार खड़े थे।बहू का घर में न होना उन्हें खल रहा था। उनका बेटा छोटू भी अपनी पत्नी किन्नी पर खीझ रहा था।एकाएक पीपल के पत्ते खड़खड़ाये,किन्नी आती हुई उन्हें दिखाई दी।झट वह कोटर में चढ़ गई और बोली –
“यह लीजिए मीठे-मीठे फल तोड़कर लाई हूॅ आपके रास्ते के लिए”।लाली ने अपनी प्यारी बहू को सीने से लगा लिया।लम्बपुच्छ फलों को देखकर भाव विभोर हो उठे उन्हेंने फलों को पकड़ लिया और कोटर से बाहर आ गये।
छोटू एवं किन्नी ने अपने माता-पिता को अश्रुपूरित नेत्रों से विदा किया। कुछ देर बाद लम्बपुच्छ और लाली आगे निकल चुके थे। रास्ते में लोमड़ी हिरिया अपने खेत की निराई कर रही थी दोनों को जाते देखकर वह बोली-
“अरी लाली तुम लोग कहाँ जा रहे हो” ?
“हम शहर जा रहें हैं हिरिया बहिन, जंगल में रहते-रहतेहम लोग ऊब गये है।इंसानों के करतब देखेंगे वहाँ, चहकती हुई लाली ने उत्तर दिया।
हिरिया लाली के मुख से ऐसे शब्द सुनकर बोली-“अरे दूर की ढोल सुहावने होते है, भला हमारे जंगल से अच्छे थोड़े ही होंगे इन्सानों के करतब। यहाँ देखो- मीठे जामुन, बेरी सब अपने ही है,सुना है वहाँ सब कुछ पैसों से मिलता है।
“हमने पैसों का बन्दोबस्त भी कर लिया है”। लम्बपुच्छ अपनी मूँछों पर ताव देते हुए बोला।
हिरिया ने उन्हें दो मीठे केले खिलाये और अश्रुपूरित नेत्रों से अपनी प्यारी सहेली लाली एवं उनके पति को विदा किया।
जंगल समाप्त हो रहा था चलते-चलते वह दोनो थक गये थे।सामने उन्हें सपाट रास्ता दिखाई दिया लम्बपुच्छ ने लाली को बताया-“देख यह सड़क है” लाली ने उचक कर देखा। उसे कुछ समझ में नही आ रहा था। वह पास के पेड़ पर कूद कर चढ़ गई और बोली-
”हाय यह कित्ती चौड़ी है ?दस मेढ़ों को एक कर दो ……..उससे भी बड़ी …………।
“अरे उतर नीचे ,वह देख इन्सान जा रहा है,क्या सोचेगा हमारे बारे में।”
झट उसने पेड़ से नीचे छलांग मार दी और सड़क के विषय में लम्बपुच्छ से पूछताँछ करने लगी ।
“बकवास बन्द कर ,यह जंगल थोड़े ही है अपना, कपड़े-लत्ते ठीक कर ले अपने लम्बपुच्छ बोला।
लाली ने थैले से लाल गोटे वाली चुनरिया निकाल कर ओढ़ ली।लम्बपुच्छ ने अपनी पीली पगड़ी सिर पर बाँध ली और मूछों पर हाथ फेरकर उन्हें करीने से कर लिया।थैले में रखे फलों की सुगन्ध लाली के नथुनों से जा टकराई, वह बोली देखो जी आम कैसे महक रहें हैं। लम्बपुच्छ के नथुने फड़फड़ाये। दोनों ने छक कर आम खाये। आम के पीले रस में उनके हाथ भीग गये थे।
“हाथ साफ कर ले लाली” हमें देख इंसान हंसेगे।
लम्बपुच्छ की बात सुनकर लाली जीभ से अपन सने हाथ साफ करने लगी उसने लम्बपुच्छ के हाथ भी चाट-चाट कर साफ कर दिये।
पेट भर गया था। दोनों सड़क पर आगे बढने लगे।लाली बार-बार अपनी लाल चुनरिया ठीक कर लेती और लम्बपुच्छ को भी पगड़ी ठीक करने की याद दिला देती थी।
एकाएक बहुत तेजी से सीटी बजी।लाली के कान झनझना उठे। यह क्या मुसीबत आ गई ? वह बोली।
पगली यह मुसीबत नही, रेलगाड़ी है।
हय इत्ती लम्बी, किस काम आती होगी ?
“अरी यही तो शहर पहुँचायेगी हमें।”
रेलगाड़ी स्टेशन पर खड़ी थी। लम्बपुच्छ बराबर वाले पेड़ पर चढ़ गया।लाली पेड़ से रेलगाड़ी को टुकुर-टुकुर देखे जा रही थी। कुछ देर बाद वैसी ही सीटी बजी। लाली का दिल दहल गया वह डर के कारण पत्तों में दुबक गई। लम्बपुच्छ ने कसकर लाली का हाथ पकड़ लिया और चलती रेलगाड़ी की छत पर कूद पड़ा। दोनों सिमट कर रेल की छत पर बैठ गये।
वह सोच रही थी ,जंगल में पेड़ तो कभी न चलते थे, वह स्वयं फाँदती,उछलती फिरती थी, पर यह कैसी बला है, साथ में इतने इंसानों को भी भगाये लिये जा रही है।रेलगाड़ी की छत पर वह लम्बपुच्छ कों पकड़े हुये बैठी थी।
रात होने लगी थी। रेलगाड़ी झटके से स्टेशन पर रूक जाती और फिर छुक छुक करती हुई धुआँ उगलती आगे बढ़ जाती। वह सोच रही थी ऐसी रेलगाड़ी जंगल में कहाँ थी ? हिरिया खेत की निराई कर कब की घर लौट गई होगी।किन्नी छोटू कोटर में सो रहे होंगे। एकाएक लाली की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गई, वह बोली-
“सच इन्सान कितना चतुर है”? रात में दिन की सी रोशनी फैली है सब ओर। उस कोटर में ऐसी रोशनी कहाँ थी,जरा सी रात में घूप्पा अंधेरा हो जाता है जंगल में।
“शहर आ गया है”, लम्बपुच्छ ने उसे बताया।
लाली प्रसन्नता से फूली न समा रही थी। लम्बपुच्छ के साथ उछलती कूदती वह प्लेटफार्म से बाहर आ गई। इंसानों की इतनी भीड़ उसने पहले कभी न देखी थी। लाली भीड़ में इधर-उधर ताकने लगी सब कुछ नया-नया लगा उसे। इक्के में जुते हुये घोड़े पर उन दोनों की दृष्टि पड़ी। घोड़े से वे अपरिचित न थे। जंगल में तीन-चार घोड़े थे रोज नदी में पानी पीने आते थे। लम्बपुच्छ ने देखा,घोडे़ को रस्सी से बाँधा गया था, आगे बढ़कर उसने घोड़े से पूछा-
“घोड़ा काका, तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई ? शहर में इतनी मोटर-कारें हुए भी इन्सान ने तुम्हें रस्सी में बाँधकर क्यों रखा है ?
बन्दर बेटा,तुमने हमारा हाल पूछा तो ? बड़े-बड़े आँसू टपकाता हुआ घोड़ा बोला। मेरी कहानी तुम जानना ही चाहते हो,तो सुना-
मैं गाँव में था, मजे से हरी घास एवं चना खाता था,नदी का पानी पीता था एक दिन मेरे मालिक को पैसों का लालच आ गया,उसने मुझे बेंच दिया।मैं शहर आ गया, तब से सवारियों से खचाखच भरा इक्का खींचता हूँ। मालिक की चाबुक सहता हँू। सूखी खास और टंकी का पानी पीता हूँ। अच्छा खाने को माँगता हूँ, तो मालिक चाबुक मारता है और कहता है- “साले देखता नही मँहगाई कितनी बढ़ गई है,,चना कितना मँहगा है, …….मेरे बाल -बच्चों का पेट भरता नहीं, तुझे कहाँ से खिलाऊ चना ?
“हाय घोड़े काका, तुमने बड़े दुख उठाये है”, रूँधे कंठ से लाली बोली।वह अपनी आखों के आँसू चुनरिया से पोछ रही थी।
“मुझे तो अब ऐसे ही काटनी है, अपनी सुनाओं बन्दर बेटे, कैसे आना हुआ यहाँ ?घोड़े ने लम्बपुच्छ से पूछा।”
शहर देखने की इच्छा थी सो चला आया लाली को लेकर ……….।
चलो मैं तुम्हें शहर के अन्दर छोड़ दूँगाा, मुझे तो जाना ही है सवारी लेकर…………….।
तुम्हारा मालिक पैसे मांगेगा काका ?
उस साले को क्या पता चलेगा, तुम इक्के में घास रखने के स्थान पर बैठ जाना।”
“ठीक है लम्बपुच्छ ने हाँमी भर ली और दुबक कर लाली के साथ बैठ गये। सवारी भर चुकी थी। मालिक ने सटासट चाबुक मारे इक्का तेजी से सड़क पर दौड़ने लगाा।
दोनों घोड़े काका का गुणगाान करते हुए शहर में घूमते रहे। सुन्दर-सुन्दर मकान, बाजार एवं उद्यानों ने लम्बपुच्छ एवं लाली का मन मोह लिया ।लाली नदी का पानी पीती थी ,यहाँ टांकी के पानी से उसका पेट दर्द करने लगा था। वह अस्पताल जाकर दवा लेना चाहती थी।
सामने एक हाथी आता दिखाई दिया।लम्बपुच्छ ने जंगल के राजा को नमस्कार किया और पूछा- राजा साहब आप यहाँ।
आप यहाँ इंसानों के बीच क्या करते हैं महाराज”?
“हाथी को लगा कि आप बीती सब बता दें। ट्रेनिंग देते समय बिजली के चाबुक से मार कर हमें नाचना सिखाया जाता है, दिन भर एक पाँव पर पर टिककर,सूँढ़ उठा कर एवं मोटी कमर मट का कर डिस्को का अभ्यास कराया जाता है? पर प्रजा (बन्दर) के सामने भला क्यों रोये ………यही सोचकर किसी तरह ह्नदय को ढाढय बँधाते हुये वह बोला-
“हमारी सर्कस कम्पनी है यहाँ, इन्सान हमारी कला को देखकर हमारा गुणगान करते है”।
बन्दर सोचने लगा “हाथी कितना भाग्यशाली है”?
अरे तुम उदास क्यों हो बन्दर बेटे ? हाथी ने प्यार से पूछा
राजा साहब, लाली पेट दर्द से परेशान है हमें अस्पताल पहुँचना है……….।
अरे इसमें चिन्ता की क्या बात है, चलो मै तुम्हें अस्पताल पहुँचता हुआ सर्कस कम्पनी चला जाऊँगा।
लाली एवं लम्बपुच्छ हाथी को पुँछ पकड़कर उसके ऊपर बैठ गये। लाली हाथी की विनम्रता देखकर दर्द गई थी। वह लम्बपुच्छ से बोली-“देखो हाथी राजा कितने महान है सर्कस कम्पनी चला रहें है, फिर भी अभिमान नही?
“हाँ लाली महान पुरूष सदैव अभिमान रहित होते हैं और सदैव दुखियों का दुख दूर करने को तत्पर रहते है” लम्बपुच्छ बोला।
कुछ देर बाद अस्पताल आ गया। दोनों ने हाथी को प्यार भरा अभिवादन किया। हाथी आगे चला गया।
अस्पताल की भव्य इमारत,डाक्टर एवं नर्सों का समूह देख लम्बपुच्छ इंसान की सराहना किये बिना नहीं रह पाये। लम्बपुच्छ ने पहले ही सुन रखा था, अस्पताल में दवा मुफ्त दी जाती है। दवा प्राप्त करने के अधिकार से अकड़ते हुए वह डाक्टर रूम में चला गये।
डाक्टर साहब को उन्होंने अपनी व्यथा सुनानी चाही, पर उनकी एक न सुनी गई।उन्हें कक्ष से बाहर निकाल दिया गया। लाली रूआँसी हो आई थी। वह दोनों बाहर आ बरामदे में बैठ गये।
एक चमचमाती गाड़ी आकर रूकी, पलक झपकते ही डाक्टरों एवं कम्पाउडरों का झुण्ड वहाँ जाकर इकट्ठा हो गया।
लम्बपुच्छ एवं लाली गाड़ी पर दृष्टि गढ़ाये थे।एक झबरे सफेद कुत्ते को वे सब हाथों का सहारा देकर कक्ष में ले आये।
लम्बपुच्छ ने एक रोगी कुत्ते के विषय में जानना चाहा, तो उसने बताया-
“यह मि0 झुरमुट राम कुत्ता है, वे आजकल अमेरिका गये हुये है। उनके पीछे चपरासियों की लापरवाही से कुत्ते का हाजमा खराब हो गया है”। मि0 झुरमुट राम ने अमेरिका से डाक्टरों को, कुत्ते की देख रेख के लिये फोन किया है।”
यह मि0 झुरमुट राम कौन है ? लम्बपुच्छ ने आश्चर्य से पूछा।
“अरे तुम नहीं जानते हो, पागल हो तुम?” शहर में उन्हें कौन नही जानता है भला रोगी ने डपटते हुये लम्बपुच्छ से कहा। लाली दर्द से तड़प रही थी उसने सोचा, कुत्ते को अपनी व्यथा सुना दे, वह इंसान नहीं है, शायद कुछ मदद करें।
निराश लाली कुत्ते के पास आई और बोली- “कुत्ता मामा ,मै दर्द से बेचैन हूँ मुझे भी दवा दिलवा दीजिये।”
तीन-चार कम्पाउन्डर आगे बढ़ आये, उनमें से एक बोला-
“क्या बकवास करती हो, हटो यहाँ से, मि0 टाइगर को पेट की तकलीफ है, आराम करने दो उन्हें।
मि0 टाइगर गुदगुदे बैड पर बैठे इतरा रहे थे, उनकी टेढी सफेद पूँछ लगातार डिस्को कर रही थी।
पशु चिकित्सक उनके पेट देख रहे थे। कुत्ता मि0 टाइगर ने अपनी गोल चमकीली आँखों को ऊपर उठाया , उसकी दृष्टि दर्द से तड़फती बँदरिया पर पड़ी-वह डाक्टरों को डपटते हुये बोले-“इतनी देर से यह दर्द से तड़प रही है, इसको दवा क्यों नहीं दी जा रही है” पशुओं के साथ यह व्यवहार?
मि0 टाइगर क्रोध में अपनी जीभ निकाल कर हाँफ रहे थे। डाक्टर लपक कर बँदरिया की ओर जा पहुँचे। लम्बपुच्छ मि0 टाइगर के पैरों पर झुक गया, वह मि0 टाइगर से अत्यधिक प्रभावित हो रहा था।
मि0 टाइगर की कृपा से लाली स्वस्थ हो गई थी। वह लम्बपुच्छ के साथ सड़क पर जा रही थी। अब पशु विरादरी में लम्बपुच्छ का अच्छा परिचय हो गया था। चलते-चलते वे दोनो थक गये थे। सामने लाल बरामदे में कुछ देर विश्राम के लिए वह बैठ गये। बरामदे के कोने में पिंजड़ा रखा था, उसमें दो हरियल तोता फड़फड़ा रहे थे। मादा तोता रो रो कर अपने बच्चों को याद कर रही थी जो जंगल में थे।
लाली का ह्नदय पिघल गया। लम्बपुच्छ से बोली,पिंजड़ा खेाल दीजिये बेचारे अपने बच्चों के पास उड़ जायेंगे।
लम्बपुच्छ पिंजड़ा खोलने का यत्न करने लगा। एकाएक रोने चिल्लाने एवं कोड़ों की धमकी सुनाई दी। लाली घबरा गई। लम्बपुच्छ से बाहर चलने को कहने लगी।
लम्बपुच्छ ने उसे धीरज बँधाया-“पगली यह पुलिस थाना है, तू काहे डरती है, यहाँ चोर-चपाटों को सजा मिलती है।”
दो आदमियों ने थाने में प्रवेश किया, स्थूलकाय सिपाही के कान में वह कुछ फुसफुसाये और रूपयों की गड्डी उस के हाथ में पकड़ा दी । सिपाही अन्दर गया जहाँ चोर पीटा जा रहा था।
कोड़ों की आवाज आना बन्द हो गई और उस व्यक्ति के रोने चिल्लाने की ध्वनि आना भी बन्द हो गई थी।
वह पिटने वाला चोर उन दोनों व्यक्तियों के साथ थाने से बाहर निकल गया । सभी वर्दीधारी टुकुर-टुकुर देखते रहे। लम्बपुच्छ का मन हो रहा था कि जोर-जोर से चिल्लाये और कहे “कि चोर भागा जा रहा है” पर सब कुछ समझकर वह चुप बैठा रहा।
वह रुपयों का गोलमाल समझ गया था,चन्द कागज के टुकड़ों के लिए पुलिस ने चोर को स्वतन्त्र कर उसके चोरी करने के हौसले और बढा दिये थे। इंसान से उसे विरक्ति होने लगी थी।
उसके कानों में तोते का करुण रुदन सुनाई दिया, जो अपने बच्चों के लिए दुखी हो रहे थे। लम्बपुच्छ उछलकर मेज पर चढ़ गया और झट पिंजड़े का द्वार खोल दिया। तोता फर्र से बाहर उड़ गये।
एक पुलिस वाला देख रहा था, वह चमड़ै का हण्टर ले गालियाँ बकता हुआ लम्बपुच्छ की तरफ दौड़ा। तड़ातड़ लम्बपुच्छ पर हण्टर बरसाते हुये बोला……………………..।
साला बन्दर की औलाद,इतने कीमती तोते उड़ा दिये, हवलदार इसे बन्द कर दो।”हराम खोर की हिम्मत तो देखो साहब के तोते उड़ा दिये।
बँदरिया लाली सिपाही के आगे रोती गिड़गिड़ाती रही , पर उसकी एक न सुनी गई। दोनों को उसीकोठरी में बन्द कर दिया गया, जहां कुछ देर पहले चोर की पिटाई हो रही थी।
लाली लम्बपुच्छ की पीठ सहला रही थी, जो कोड़े की मार से लाल पड़ गई थी । उसे शहर आने का पश्चाताप हो रहा था। पर विवश लाली क्या कर सकती थी ?
तीन दिन से लम्बपुच्छ और लाली को जेल में खाने को नहीं दिया गया था वही तोता खिड़की से अन्दर आ गया-अपनी आँखों में आँसू भरता हुआ बोला-“बन्दर काका, यह फल खा लीजिये, आपने हमारे कारण संकट मोल ले लिया है।”
लम्बपुच्छ और लाली फलों पर झपट पडे़। तीन दिन बाद उन्हें भरपेट खाने को मिला था। तोता लम्बपुच्छ की लाल पीठ देखकर रुआँसा होकर बोला-
“अपनी मुक्ति की कोई युक्ति सोचो काका।”
तोते की बात सुन लम्बपुच्छ ली आँखें छलक पडी़, वह बोले-
“मुसीबत में अपना ही काम आता है बेटे, इन्सानों ने हमारे साथ बदसलूकी की है।बेटे तुम मेरा एक काम कर दोगे बेटे?
“क्यों नही काका, मेरी जान भी हाजिर है आपसे लिये।
लम्बपुच्छ ने थैले से एक कागज निकाला , जिस पर नम्बर लिखा हुआ था।तोते के कान में वह कुछ फुसफुसाये, तोता कागज चोंच में दबाये फर्र से उड़ गया। “पकड़ों-पकड़ों अपना प्यारा तोता आ गया है“वर्दीधारियों की ध्वनि सुनाई दी, पर हरियल तोता तब तक नील गगन में उड़ चुका था।
लम्बपुच्छ और लाली मन ही मन ईश्वर से अपनी मुक्ति की भीख माँग रहे थे। शहर आने की भूल पर उन्हे बहुत दुख हो रहा था। अचानक उनका दरवाजा खुला हवलदार कमरे में प्रविष्ट हुआ। दोनों भयभीत हो थरथर कांपने लगे।
हवलदार लम्बपुच्छ को पुचकारते हुए बोला-“श्रीराम बन्दर महोदय, क्षमा करना आपने हमें पहले क्यों नहीं बताया कि आप मि0 टाइगर के सम्बन्धी है।”
लम्बपुच्छ आश्चर्य चकित नेत्रों से हवलदार को देख रहा था,जिसकी वाणी में अब शहद घुल चुका था।
“अभी मि0 टाइगर का फोन आया था उन्होने तुरन्त आपकी रिहाई के आदेश दिये है…… आप माननीय लाली के साथ जा सकते है।लाली और लम्बपुच्छ प्रसन्नता से झूमते हुये बाहर आ गये। हवलदार ने उन दोनों चाय पीने का आग्रह किया। लाली गरम चाय सुड़कने लगी, उसकी जीभ जल गई।
चाय के बाद कई वर्दीधारियों ने उठकर लाली एवं लम्बपुच्छ को सादर प्रणाम कर विदा किया।
मि0 टाइगर के टेलीफोन का नम्बर लम्बपुच्छ को चमत्कारी लग रहा था मि0 टाइगर ने चलते-चलते उन्हें यह नम्बर पकड़ा दिया था अन्यथा कब तक कैद में सड़ते। यही सोचकर वह दोनों आगे बढ़ते जा रहे थे।
काफी दूर चलने के बाद उन्हें शहर के मध्य बहती हुई एक नदी दिखाई दी। लाली चिहँुक कर बोली-“चलिये नदी का पानी पी लें, इत्ते दिन से टंकी का पानी पीते-पीते जी ऊब गया है।”
लाली नाक सिकोड़ कर बोली- सुनो जी इसमें बू आ रही है अपने जंगल की नदी का पानी कितना अच्छा था।
यह शहर की नदी है जरुर इंसानों ने गन्दी कर दी होगी लम्बपुच्छ बोला ।
गन्दी नदी है प्रदूषित कर दी है- लाली बोली।
तुझे कैसे पता ? लम्बपुच्छ की बात सुनकर लाली बेमन से पानी पीने लागी।
दोनों ने बहते पानी में स्नान किया। नदी के किनारे सफेद बालू एवं झबरीली झाड़ियां उन्हें अपने प्यारे जंगल की याद दिला रही थी लम्बपुच्छ ने जामुन तोडे़, दोनों नें पेट भर जामुन खाये।
लम्बपुच्छ की दृष्टि दूर चली गई। नदी के किनारे इन्सानों की इतनी भीड़ देखकर उसे आश्चर्य हुआ। वह नदी के समीप वाले बृक्ष पर बैठ गया। दूर ऊँची-ऊँची श्वेत अट्टालिकायें दिखाई दे रही थी। नदी के पुल के नीचे प्रवाह मान जल बहुत सुन्दर दृष्टिगोचर हो रहा था।
एकाएक सामूहिक विलाप, सिसकियों एवं चीख-पुकार की ध्वनियों से लम्बपुच्छ घबरा गया। दस-बारह नौकायें नदी में बदहवास सी घूम रही थी।तट के किनारे ध्वनि से ह्नदय विदारक दृश्य उपस्थित हो रहा था। संध्या हो रही थी। लोंगों के आपसी वार्तालाप से लम्बपुच्छ सारी घटना को जान गया था।
इंसानों से खचाखच भरी दो नावें पानी में डूब गई थीं। उन्ही डूबे व्यक्तियों के परिवार जन एवं सम्बन्धी छाती पीट-पीट कर विलाप कर रहे थे। इतनी भोली, सरस नदी की धारा इतने इंसानों को एक साथ निगल गई। यह सोचकर लम्बपुच्छ का ह्नदय व्यथा से भर उठा।
पन्द्रह शव नदी से निकाल कर किनारे रखे जा चुके थे। दुर्घटना हुये चार घन्टा बीत चूके थे।गोता खोर शवों को ढूंढ़ने में व्यस्त थे। थाने के बर्दीधारी लोग भी व्यवस्था के लिये तैनात थे। इस दुख की घड़ी में भी वर्दीधारियों में कोई बदलाव नहीं है, वह रोते लोगों को झिड़क रहे थे।
लम्बपुच्छ जिस वृक्ष पर बैठा था उसी के नीचे चार शव रखे हुऐ थे।अँधेरा बढ़ गया था। एक आदमी लाशों के इर्द-गिदँ चक्कर लगा रहा था। लम्बपुच्छ सोच रहा था-बेचारा अपने प्रियजन का शव खोज रहा होगा” उसकी आँखों से टप-टप आसू गिर पडे़। लाली जाने कब से सिसक रही थी।
धीरे से वह व्यक्ति एक लाश पर झुका। लम्पुच्छ की तेज आंखें और भी तेज हो गई । वह लाश युवती की थी । उसने मृत युवती के गले से जंजीर निकाल ली और दूसरे शव की कलाई से घड़ी खोल ली । दबे पांव वह अधेरे में विलीन हो गया।
लम्बपुच्छ का मन घृणा से भर गया उसने जोर से थूक दिया-“दुख की इस भयंकर घड़ी में भी इंसान इतना गिर सकता है। इंसान से शेर अधिक पराक्रम शाली है तन में हाथी अधिक भारी है,पर मात्र बुद्वि दया परोपकार एवं विशिष्ट सूझबूझ के कारण ही इंसान इन सब में सर्वोपरि है। पर क्या यह इंसान कहलाने योग्य है? जो लाशों का कफन उतार रहा है विपत्ति ग्रस्त लोगें को दिलासा देने के बजाय उनकी अवशिष्ट जंजीर एवं घड़ी तक झपट रहा है।
“हाय इंसान,लम्बपुच्छ ने गहरी सांस ली और लाली का हाथ पकड़ वहां से दूर भाग गया। इंसानों का यह घिनौना रूप देखकर लम्बपुच्छ की आत्मा कराह उठी । वह सोचने लगा-“पशुओं मेें भी ममता है तभी तो बँदरिया अपने मृत बच्चे को भी छाती से चिपकाये रहती है कोयल पराये बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा कर देती है,पर वह इंसान जिसे विधाता ने समस्त गुण प्रदान कर सर्वोपरि बनाया, वह इतना निकृष्ट कैसे हो गया?”
सड़कों पर हजारो बिजली के दिये दिपदिपाने वाला इंसान अपने ह्नदय में इन्सानियत का एक दिया क्यो न जला पाया?
बड़ी-बड़ी नदियों पर बहती धाराओं को मोड़ सेतु बनाने वाला इंसान अपने दिल में प्रवाहित लोभ की धारा को क्यों न मोड़ पाया?
लम्बपुच्छ का मन भारी हो रहा था दुख से उसके कदम बोझिल हो रहे थे। उसने इंसान देखे, पर इन्सानियत नहीं देखी।
लाली का हाथ पकड़ कर वह बदहवास सा अपने जंगल की ओर दौड़ने लगा। उसे लोमड़ी हिरिया की बात याद आ रही थी-
“दूर के ढोल सुहावने होते है, अपने जंगल से थोडे़ ही होगा शहर।”