मज़दूर

 मज़दूर

Mukesh Kumar is an IRS officer.

1]

गंगा प्रसाद खेत पर काम करते-करते थक कर बैठा था. देखा,सामने उसकी पत्नी राम पियारी खाने को लिए आ रही थी. मन ख़ुश हो गया.
“बेटा जाग्रत और बेटी चेतना नहीं आए ?” खाना खाते हुए गंगा प्रसाद ने पूछा.
“दोनों भाई- बहन कुछ पढ़ रहे थे, सो नहीं बुलाया उनको” राम पियारी बोली.
वह खाना खा ही रहा था कि गोबर्धन मिसिर पान चबाते हुए आ गए.
“का हो गंगा प्रसाद ! कुछ काम नहीं किए. बस बैठे खा रहे हो.” वह बिगड़ते हुए बोले.
“काम तो कर लिए हैं पूरा. तो अब जो बनता है हमारा हमको दे दो. बच्चों की फ़ीस जमा करनी है.” हाथ धोते हुए गंगा प्रसाद बोला.
“बड़ी अकड़ आ गयी है.” गोवर्धन बिगड़े,”काम किए हो तो मजूरी मिलेगी.लेकिन जो काम ठीक नहीं उतनी काट के देंगे.”
गंगा प्रसाद संतोषी आदमी था.पढ़ा-लिखा था.मजबूरी में खेती- मजूरी का काम करता था.न्याय की अवधारणा से परिचित था. सो काम के अनुपात में मज़दूरी लेने को तैयार हो गया.

समय बीतता गया.

जाग्रत और चेतना छात्रवृत्ति से उच्च शिक्षा प्राप्त कर सहायक प्रोफ़ेसर और डाक्टर बन गए.
२]
गंगा प्रसाद और राम प्यारी के सुविचारित और दूर दृष्टिपूर्ण कामों से उनका जीवन बदल गया. बच्चों के अच्छे रोज़गार और खेती की क्रमशः बढ़ती ने संपनता बिखेर दी.
आज उनके नए बने घर का गृह प्रवेश था. पुजारी गोबर्धन मिसिर कर्म- कांड करवा रहे थे. जाग्रत कई बार उनके ग़लत मंत्रोच्चार पर आपत्ति व्यक्त कर चुका था.
“पुजारी जी आपके इस मंत्र पाठ में कई कमियाँ हैं.” जाग्रत बोला.
गोबर्धन कुछ नहीं बोले. लम्बी उमर का अनुभव था.
बोले,” अब ये सब कर्म कांड ही तो है बेटा. इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.”
कार्य क्रम पूरा हुआ. गोबर्धन मिसिर बोले, “राम प्रसाद जी, अब मैं भी चलूँ.”
राम प्रसाद ने उनको तय 2000 /-रुपयों की जगह 1700/- ही दिए.
गोबर्धन ने प्रश्न भरी नज़रों से देखा.
“गोबर्धन काका यह आपकी तय मज़दूरी में आपके अशुद्ध काम को काट कर दिए हैं पिता जी ने” जाग्रत सतर्क आवाज़ में बोला.
“ मज़दूरी ??” गोबर्धन मिसिर चौंकते हुए बोले
“ हाँ काका! हम सब मज़दूर ही तो हैं, बस काम अलग- अलग हैं सबके.”
गोबर्धन ने उच्च शिक्षित नव युवक से तर्क- वितर्क न करने में ही समझदारी समझी.
वापस घर जाते समय गोबर्धन मिसिर के मन में गूँज रहा था,” हम सब मज़दूर ही तो हैं काका ! बस काम अलग- अलग हैं सबके.”

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