मैं अब भी बिल्कुल ठीक हूँ माँ
दीपक भारद्वाज ‘वांगडु’
कहने को सब बढ़िया है लेकिन
अपनी भी कुछ मज़बूरी है
जीवन के इस पड़ाव में अब
निभानी जिम्मेदारी जरूरी है
इसीलिए तो चला आया मैं
छोड़ के अपना वो संसार
मिलता जहां सदा निश्छल प्यार
पर दूर भले हूँ तुझसे लेकिन
दिल के तेरे करीब हूँ माँ
तुम मेरी चिंता मत करना
मैं अब भी बिल्कुल ठीक हूँ माँ।
कुछ मुश्किलें पड़ती हैं राहों में
कुछ बेचैनी भी इन पनाहों में
हो जाता हूँ जरा सा बेचैन मैं
जब सुकूँ ना मिलता आहों में
फिर भी न घबराया कभी
राहों में न डगमगाया कभी
छांव में तुम्हारे आशीर्वाद के
जो भी चाहा पाया सभी
इक तुम ही तो मुझे समझती हो
मैं जैसा भी अज़ीब हूँ माँ
तुम मेरी चिंता मत करना
मैं अब भी बिल्कुल ठीक हूँ माँ।
कभी लगता है भले की
धड़कन रुक सी गयी
ये सांसे धीमी-धीमी होते
मानो इक पल थम सी गयी
आंखों में जब मोती बनकर
कुछ यादें चमकने लगती हैं
अन्तर्मन में आपस में ही
कुछ कलह सुलगने लगती है
तब भले ही यह सोंच लेता हूँ
की शायद यही मेरी नसीब है माँ
पर तुम मेरी चिंता मत करना
मैं अब भी बिल्कुल ठीक हूँ माँ।
कुछ नमूने भी बहुत याद आते हैं
जिनमें मेरी जान बसती है
जिनसे मिलने के लिए
सदा मेरी आँख तरसती है
वही सब जिगरी यार तो
मेरे जीवन की पूंजी हैं
मेरे खुशियों के खज़ाने के
अनमोल सभी वे कुंजी हैं
जरा उन्हें भी बतलाना देना
बिना उनके बहुत गरीब हूँ माँ
और तुम भी चिंता मत करना
मैं अब भी बिल्कुल ठीक हूँ माँ।