जिनमें है दम उनके साथ हैं हम
राजीव चौधरी
(लेखक, Delhi Technological University में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं। कविता,कहानी और व्यंग्य लिखने में आपकी रुचि है ।)
इस विषय में ही अपने आप में बड़ा दम है, बड़ी सम्भावनाएं है, जो अच्छी भी हैं और बुरी भी, जो अपने लिए तो सच हैं ही, लोगों, देश और समाज पर भी लागू होती हैं । अब ये सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि बात किस दम की हो रही है। क्योंकि दम भी कई प्रकार का हो सकता है, वो पैसों का हो सकता है, पद का हो सकता है, हैसियत या फिर अपनी जाति और धर्म का भी हो सकता है। अपने देश में तो ये सभी दम बड़ी सहजता से बहुतायत में देखे जा सकते हैं, इनके हर तरह के छोटे, मझोले और बड़े दमदार लोग बिखरे पड़े हैं, देश भर में। विशेषकर, धर्म और जाति के दम का तो कहना ही क्या, इसमें तो शायद ही कोई दूसरा देश हो जो अपने देश से दम लड़ाने का साहस जुटा पाए। जिसके पास जिस प्रकार का भी दम होता है वो उसका दम भरता है और जिसके पास नहीं होता वो किसी दमदार व्यक्ति का साथ धर लेता है और उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। क्योंकि इसी से, वो दमदार आदमी के दम का एहसास अपने नथुनों में भरकर दमदार हो लेता है। वैसे इसमें उस दमदार व्यक्ति के दम में भी हिज़ाफ़ा होता है, क्योंकि वो भी ऐसे तमाम दमहीन लोगों का दल बनाकर एक संख्याबल तैयार करता है और एक हुजूम रखने का दम भरता है।
एक और वर्ग है लोगों का जिन्हें होश में रहकर अपने अंदर किसी दम होने का एहसास तो नहीं होता, मगर यदि कोई दम लगाने को मिल जाए तो उनका दम सीधे सातवें आसमान पर होता है। ऐसे लोग अपने को दमदार अवस्था में लाने के लिए बहुत कुछ आज़माते हैं। ये लोग कुछ ख़ास, दमदार लोगों का साथ ही पसंद करते हैं। वो उन्हें बिलकुल पसंद नहीं करते जो कोई दम न मारते हों।
अच्छा, इन सबके इतर, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो समझते हैं कि मन, वचन और कर्म में भी बहुत दम होता है। ऐसे लोगों का अपना विश्वास तो बहुत दमदार होता है, पर प्राय: सामान्य लोगों को इनमें कोई दम नहीं दिखाई देता है। जैसे गांधी जी देखने में दमदार नहीं दिखते थे, ये लोग वैसे ही दिखते हैं, पर कभी मौका आ जाए तो अकेले ही बड़े दमदार साबित होते हैं। और जब कुछ ऐसे लोग इकट्ठे हो जाते हैं तो इनके सामने किसी का भी दम, दम तोड़ देता है। इस तरह के दमखम के लिए किसी लाठी-डंडा, गोली-बंदूक या किसी दल-बल की ज़रूरत नहीं होती। इस तरह के लोगों का दम इनके आत्मबल पर टिका होता है, जिसे लेकर जब ये लोग खड़े होते हैं तो कुछ वैसा ही नज़ारा होता है जैसे गांधी के पीछे खड़े देश का दमखम अंग्रेजों को नज़र आया था। इन तमाम दम से भरे प्रकरणों में, अपने विचार और अभिरुचि के अनुसार कोई दम तो चुनना ही पड़ता है, क्योंकि इसके अभाव में व्यक्ति बेदम साबित हो जाता है, जिससे वह किसी दमदार व्यक्ति का शिकार हो सकता है।