लेख @ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और बच्चे

 लेख @ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और बच्चे

“दिशा — हमारे बच्चों की “— रचना चौधरी

# चौदह- पंद्रह साल के बच्चे ने ज़रा सी डाँट पड़ने पर फांसी लगा ली।सातवीं क्लास का बच्चा अपनी टीचर को मेसेज करता है कि ” आप मेरे साथ डेट पर चलो “! वहीं आठवीं का बच्चा , टीचर को मेसेज करता है कि ” मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।”, बहुत छोटी उम्र के बच्चे जाने क्या अनाप शनाप बातें करने लगे हैं। ##
ये कोई काल्पनिक कहानियाँ नहीं हैं बल्कि आये दिन अखबारों में छपने वाली खबरें हैं। बड़ा अजीब लगता है ऐसा पढ़कर , सुनकर ! साथ ही कहीं न कहीं ये भी लगता है कि वो बच्चे किसी खराब या गंदे माहौल में पल रहे होंगे , हमारे बच्चे ऐसा नहीं करेंगे !
हम्म्म….
कल तक शायद उनके पेरेंट्स भी कुछ ऐसा ही सोचते रहे होंगे ! पेरेंट्स चाहे जैसे भी हों पर वो अपने बच्चों को फिलहाल ये सब तो नहीं ही सिखाते होंगे ! फिर कौन ज़िम्मेदार है उन बच्चों की ऐसी सोच के पीछे ?? जिन बच्चों को शायद अपने नाम का मतलब भी नहीं पता होगा ठीक से , वो इतनी घटिया बातें कैसे सीख रहे हैं ?? कुछ तो माध्यम है न , जहाँ से उन बच्चों के ज़ेहन में सृजनात्मक ज्ञान भरने के बजाय ऐसी गन्दगी भर रही है, बच्चे वक़्त से पहले प्रौढ़ हो रहे हैं!!
अपने आस पास नज़र दौड़ाइए तो एक बात समझ में आती है कि आज के समय में बच्चों की दुनिया स्कूल के बाद सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ( टीवी, मोबाइल आदि ) और घर की दीवारों के बीच कैद होकर रह गयी है ! और उसकी इस दुनिया से उसे क्या मिल रहा है ???
बिलकुल , बच्चे अपडेट हो रहे हैं , स्मार्ट बन रहे हैं , कम समय में टेक्निकल तरीके से ज्यादा कुछ सीख रहे हैं ! मगर साथ ही जाने अनजाने वो और भी बहुत कुछ ऐसा देख , समझ और सीख रहे हैं जोकि उनकी उम्र और समझ के हिसाब से बिलकुल अलग है !! अगर वो इस इलेक्ट्रॉनिक घेरे से बाहर भी आते हैं तो पेरेंट्स का स्नेह कम और टकराव ही ज़्यादा देखते हैं !!
उनके दिमाग में जो नेगेटिविटी भरती जाती है , उसे बाहर निकलने का कोई माध्यम नहीं होता उनके पास ! उनकी सोच कहीं गलत जगह जाकर अटक जाती है ! क्योंकि उनके पास कोई नहीं होता जो उनसे बात करे , उनमें सकारात्मकता भरे , उनकी मनोदशा समझे !!
पेरेंट्स तो स्कूल के सिलेबस और रिपोर्ट कार्ड्स में ही ऐसा उलझ जाते हैं कि उनके पास समय ही नहीं बचता कि कभी वो अपने बच्चे के सोच की दशा और दिशा को परख सकें !! और जब तक वो समय निकाल पाते हैं तब तक उनके बच्चे की सोच मूर्त रूप ले चुकी होती है !!!
इसलिए हम सभी का वक़्त रहते सचेत होना अति आवश्यक है ! बच्चे को सुख सुविधाएं उपलब्ध कराने के अलावा निम्न बातों पर भी ध्यान दें…..

1– बच्चे की सोच कहीं गलत जगह अटकी तो नहीं पड़ी है , उसकी सोच में प्रवाह की आवश्यकता है ! क्योंकि ठहरी हुई सोच , ठहरे हुए पानी की तरह सिर्फ सड़न पैदा करती है !!

2– बच्चे का किसी न किसी रचनात्मक कार्य में इंगेज रहना ज़रूरी है !

3– उसकी बातचीत की भाषाशैली , उसकी बॉडी लैंग्वेज , उसकी फ्रेंड सर्किल को ऑब्जर्व करते रहना ज़रूरी है !!

4– बच्चों को किसी न किसी तरीके से प्रकृति से जोड़कर रखना आवश्यक होता है ! वो तरीका कुछ भी हो सकता है !चाहे खुली हवा में सैर के माध्यम से , चाहे बागवानी या फिर और कुछ आपकी उपलब्धता अनुसार !!

5– बच्चा क्या कंटेंट इनपुट क़र रहा ( बुक्स, मोबाइल , टीवी या अन्य किसी माध्यम से ) है, उसपर निगरानी और नियंत्रण रखना !

6 — बच्चे को उसकी खुद की वैल्यू का एहसास दिलाना , सोसाइटी में उसकी प्रजेंस की इम्पोर्टेंस बताना !
ये हमारी नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी है कि हम अपने और अपने आस पास के बच्चों को गलत दिशा में जाने से रोकें !!!