शाहाना परवीन की कविताएँ

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढ़ी लिखीं शाहाना परवीन को कविता,लघुकथा, लेख लिखने में रुचि के साथ एंकरिंग का भी शौक़ है ।वर्तमान में पटियाला में रहती हैं । contact:shahana2020parveen@gmail.com

तेज़ाब

उफ्फ ! नाम लेते ही ऐसा लगा
जैसे अंदर तक किसी ने जला दिया हो
रूह तक काँप जाती है
जब सुनती हूँ इस शब्द को
पर आज यही हो रहा है
पुरुष यही करता है एक नारी के साथ
नारी को ज़बरदस्ती
अपना बनाने का प्रयास करता है
वह करती है इंकार
बस डाल देता है उस पर तेज़ाब
उफ्फ! कितना घिनौना कृत्य है यह
यदि स्वयं उस पर कोई डाले तेज़ाब
तब पता चले उसे वो दर्द, वो पीड़ा
जो उसने जानबूझकर एक नारी को दी है
एक नारी साहस कर फिर उठती है
करती है तलाश मार्ग की
स्वयं के लिए
अपनी हिम्मत को नहीं मरने देती
जीती है स्वयं के लिए
एक पुरुष तेज़ाब से
नारी के शरीर को तो जला सकता है
पर उसके आत्म विश्वास को नहीं
उसके चेहरे को बदसूरत बना सकता है
पर उसके हृदय को कमज़ोर नहीं
नारी तुम बहुत बहादुर हो
करो सामना इस भयानक रोग का
जड़ से मिटा डालो इसे समाज से
तुम्हें ही यह सब करना होगा
तुम केवल लक्ष्मी या सरस्वती ही नहीं हो
तुम काली और दुर्गा भी हो
कर दो विनाश उन दरिंदों का
जो समाज में फैलाते हैं दहशत
करते हैं लड़कियों, महिलाओं के साथ
ऐसा दुस्साहस़
समाप्त कर दो उन राक्षसों का अस्तित्व
बनकर तुम तेज़ धार हथियार
तुम बहादुर हो
आगे बढ़ो , करो हिम्मत
हमें पता है नारी
तुम शक्ति का रूप हो
तुम यह कर सकती हो
एक दिन थरथर काँपेगें ये दरिंदे
भीख माँगेगे अपने जीवन की तुमसे
तुम इन्हें जो चाहे दंड देना
उठो! समय तुम्हें पुकार रहा है
उठो नारी!
उठो!

परदेसी है जीवन

सुख – दुख हैं परदेसी की तरह,
बारी – बारी से आते हैं , जाते हैं,
कभी हमें हंसाते हैं , कभी रुलाते हैं।
जीवन मे हम भी हैं एक परदेसी की तरह,
जाने कब हमे भी जाना पड़ जाए,
हमारे कर्म ही हैं जो बाद में सबको
हम परदेसी की याद दिलाते हैं।
परदेसी कुछ होते ऐसे
जिन्हें चाहता संसार सारा।
कुछ परदेसी ऐसे भी,
जिन्हें नहीं अपनाता संसार सारा।
तुम करोगे वृद्धों की सेवा, आशीर्वाद पाओगे,
फिर संसार मे अच्छे परदेसी बन छा जाओगे।
मानव के कर्मों का फल, मिलता इसी धरती पर,
परदेसी की दुनिया हो जाती दीवानी,
जब देता वो सहारा गरीबों को।
दो वक्त के भोजन से परदेसी भरता पेट भूखों का,
जग में रहता नाम
भगवान भी करते प्यार परदेसी को।।
परदेसी है जीवन हमारा
कुछ समय के लिए अपनाता है हमें,
एक दिन सब छोड़कर मानव उड़ जाता है
पीछे रह जाती हैं परछाई, कुछ खट्टी – कुछ मीठी,
यही यादें दूसरे परदेसी को
जाने वाले की याद दिलाती हैं।

मेरी पीड़ा नहीं मात्र मेरी पीड़ा

“मेरी पीड़ा” भावों के माध्यम से ही समझी जा सकती है,
“मेरी पीड़ा” हर स्त्री पुरुष , समाज में नज़र आती है,
मेरी पीड़ा का अर्थ नहीं मात्र एक “मेरी पीड़ा”
मेरी पीड़ा एक ऐसी कहानी जो इतिहास दोहराती है।।

अपनी पीड़ा लगती सबको कष्टकारी, दुखदायी,
औरो की पीड़ा कभी किसी को समझ नहीं आई,
अगर जान गए तुम सामने वाला भी दुखी परेशान है,
उसकी पीड़ा भी तुम्हारे हृदय की धड़कन बढ़ाती है।

जब सुनती हूँ कि किसी कन्या पर अत्याचार हुआ,
मन होता बहुत आहत पीड़ा अंदर तक दुख देती है,
टेलीविजन पर देखती व खबरें पढ़ती हूँ अखबारो में,
उनकी पीड़ा हर माँ के दिल की कंपकंपी बढ़ाती है।

हम सब में कहीं ना कहीं रहती है पीड़ा नामक बीमारी,
कभी दिखाई देती, कभी छुपी रहती है हमारी कहानी,
मेरी पीड़ा तुम्हारी पीड़ा नहीं है अलग- अलग,
परिस्थिति अनुसार पीड़ा रूप बदल सामने प्रकट हो जाती है।।

बेटी के शब्द पिता के लिए

एक बेटी से पूछते हो कि
उसके लिए क्या होते हैं “पिता”?
क्या लिखेगी बेटी पिता के विषय में
उसके रोम- रोम में समाए है उसके पिता
शब्द नहीं हैं बेटी के पास
जब भी लिखने की कोशिश करती है बेटी
आँसू आँखो से बह निकलते हैं
बहुत करती है प्रयास की
रोक ले आँसू पर आँसू ठहरते नहीं है।
एक बेटी से पूछते हो कि
उसके लिए क्या होते हैं “पिता”?

किसी देवता से कम नहीं पिता,
फूलों की मीठी सुंगध हैं पिता,
पिता से बढ़कर कोई मित्र नहीं जहाँ मे
पिता हैं सब कुछ बेटी के लिए इस जहाँ मे।
पिता से बढ़कर कोई मित्र नहीं जहाँ मे
पिता समुंदर है बेटी की खुशियों का
जिसमे बेटी तैरती है निर्भीक होकर
एक बेटी से पूछते हो कि
उसके लिए क्या होते हैं “पिता”?

यह पूछो कि क्या नहीं हैं पिता बेटी के लिए
सब कुछ हैं पिता एक बेटी के लिए
जन्म दाता से लेकर अंत तक बेटी के गुरू ह़ै पिता
हर मुसकान पर जान लुटाने वाले गुरूर हैं पिता
पिता बेटी की चित्रकला, चित्रों से सजी कहानी है
जिसमे बेटी रंग बिरंगें रंग भरती है
पिता विश्वास है बेटी का जिस पर बेटी
आँखे बंद कर भरोसा करती है
एक बेटी से पूछते हो कि
उसके लिए क्या होते हैं “पिता”।।