सीमा अहिरवार ‘ज्योति’ की कविताएँ-4
[एक बच्चा]
एक बच्चा बेकार सा बच्चा
बेबस लाचार माँ बाप का बच्चा
भाई बहनों में सबसे बड़ा
होशियार सा बच्चा
मिट्टी गारे पत्थरों को
समेटता बच्चा
गोबर के उपलों
चूल्हे के धुएं में उलझा हुआ बच्चा
अँधेरे से लङता हुआ
उजाले को खोजता हुआ बच्चा
एक बच्चा बेकार सा बच्चा
हर काम में कुशल
घर स्कूल दोस्तों के दिलों में
बेहतरीन सा बच्चा
जज्बाती साहसी उदार सा बच्चा
अक्सर चुभता था मॉ को
चुप सुनते थे पिता
वो कहती काश ये बेटा होता
एक अपराध सा बच्चा
[याद]
अदृश्य एकांगी अनुभूति
एक आत्मीय विभूति
भूत वर्तमान भविष्य का आधार
वेदना व्याकुलता छटपटाहट का आभास
बीते हुए पलों का लहराता झौंका
जुङे हुए तारों का खिंचाव
अनगिनत स्मृतियों का भिदा हुआ गुच्छा
रेशमी मधुर संवेदनशील इतिहास
अतीत की अनचाही तस्वीर
कल्पना की उड़ानों से दूर
मानव मन बिभोर हो जाता है
घने बादलों में दामिनी को देख
जीवन की तृप्ति या अतृप्ति
की कामना यादों का दस्ता
[ तुम ]
बाँसुरी की तान से
धडकनो के ध्यान से
मुझको बुला रही हो तुम
शायद कुछ गुनगुना रही हो तुम
मैं तो बस सफर में हूं
शायद तुम्हारे शहर में हूं
क्या घर बुला रही हो तुम
या यूं ही मुस्करा रही हो तुम
कितनी अजीब बात है
कुछ दिन की मुलाकात है
हैरान हूं परेशान हूं
कितना रुला रही हो तुम
या मुझको हँसा रही हो तुम
जैसी भी हो तुम ठीक हो
मेरे लिए सटीक हो
शायद कुछ बता रही हो तुम
मेरी आँखों में झिलमिला रही हो तुम
मुस्करा रही हो तुम
मुझको बुला रही हो तुम
शायद कुछ गुनगुना रही हो तुम
[ दृष्टि]
दृष्टि पल भर झपकी नही
आमोद मे प्रमोद मे लिपटी नहीं
थे कई तर्क वितर्क
उलझी नहीं
दृष्टि पल भर झपकी नही
क्या कोई ये लक्ष्य है
या कोई प्रत्यक्ष है
देवता है या कि दानव
पहेली अब तक सुलझी नही
दृष्टि पल भर झपकी नही
[ जिंदगी इतनी आसान नहीं ]
जिंदगी इतनी आसान नहीं
रोटी कपड़ा और मकान ही
जीने का सामान नहीं
मोहब्बतों की धूप से सिकते
हैं बदन
प्यार की छाँव में होतीं हैं
मीठी नींदे
धूप का खिलना छाँव का पलना
सबकी किस्मत में ऐसा जहांन नहीं
जिंदगी इतनी आसान नहीं
सब कुछ मुकम्मिल है दिल को सुकून है
हर चीज सलामत है जीवन में जान है
पर जी उदास है
क्या कुछ खास बात है
सबसे ऊंची हमारी शान नहीं
जिंदगी इतनी आसान नहीं
आदमी खुद को ही घर बनाता है
रहने बालों को भी बनाता है
करता है सबकी देखभाल
खुद टूटता है फूटता है
घर से चला जाए कोई
तो आदमी में जान नहीं
जिंदगी इतनी आसान नहीं
लम्बा सा कोई रस्ता राह में सम्हलना
ठोकरों को सहना पत्थरों में रहना
वारिसों सा रोना अजनबी बिछौना
यही ठौर है ठिकाना
यहाँ तुम मेहमान नहीं
जिंदगी इतनी आसान नहीं