हैप्पी बड्डे गाँधी जी

तेज प्रताप नारायण

गाँधी के बारे में बात की जाए तो उनके जीवन की कई सारी बातें हैं जिनपर चर्चा की जा सकती है । सबसे बड़ी बात जो समाज को गाँधी से सीखनी चाहिए वह है आंदोलन या विरोध का उनका अहिंसात्मक तरीक़ा ।मेरा मानना है गाँधी की अहिंसा, बुद्ध की करुणा और वैज्ञानिकता तथा अंबेडकर की सोच ही भारत जैसे समाज को सही दिशा दे सकती है । गाँधी की सबसे बड़ी कमजोरी , हिन्दू धर्म की वर्णव्यवस्था में आस्था थी ,हालाँकि उन्होंने हमेशा अश्पृश्यता का विरोध किया लेकिन अश्पृश्य समाज को हरिजन के रूप में टैग भी कर दिया ।अगर गाँधी ने वर्णव्यवस्था को रिजेक्ट किया होता तो उसके दूरगामी परिणाम हो सकते थे । संविधान ने भी परोक्ष रूप से इस व्यव्स्था को अपना लिया और केवल लिख दिया गया कि जाति धर्म के नाम पर किसी तरह का भेदभाव असंवैधानिक होगा । होना तो यह चाहिए कि संविधान में लिखा होता कि जाति व्यवस्था ही पूरी तरह अवैज्ञानिक और अवैधानिक है ।

गाँधी का जाति -वर्ण में विश्वास था ही पर संविधान सभा के अधिकांश सदस्य भी परोक्ष रूप से जाति या वर्ण में विश्वास करते रहे होंगे ।मुझे नहीं पता कि अंबेडकर ने कोई ऐसा प्रस्ताव संविधान के प्रारूप में कहीं रखा था जिसमे जाति को अवैज्ञानिक और ग़ैर कानूनी कहने की बात रही हो । शायद संविधान के मौजूदा रूप में भी ऐसा कुछ नहीं है जहाँ तक मेरी जानकारी है ।

गाँधी जी का वर्ण व्यवस्था पर ठप्पा ही शायद वह कारण था कि उन्हें बहुत स्वीकार्यता मिली ।क्या उन्हें वह स्वीकार्यता मिली होती यदि उन्होंने वर्णव्यवस्था का खुल कर विरोध किया होता ,शायद नहीं।

यह आज भी सत्य है कि कोई व्यक्ति चाहे वह राजनीतिज्ञ हो ,लेखक हो या किसी अन्य प्रोफेशन का ,यदि वह जाति या वर्ण व्यवस्था का विरोध करता है तो उसकी नियति पहले से तय हो जाती है कि उसे बहुत महत्व नहीं मिलने वाला ।ढाँचे के अंदर ही आप बस थोड़ा बहुत बदलाव कर लीजिए तो ठीक।आप समरसता की बात तो सकते हैं लेकिन समानता की नहीं ।

इन सबके बावज़ूद गाँधी से सबसे बड़ी सीख जो मिलती है वह है उनकी कथनी और करनी में अंतर न होना ।जो वह कहते हैं वह पहले करने का प्रयास करते हैं ।उनकी यात्रा साधरण से असाधारण की है ।
गाँधी द्वारा दिए गए अहिंसात्मक तऱीके से ही यह देश और समाज आगे बढ़ सकता है ।वैसे अहिंसा का सिद्धान्त महावीर ,सम्राट अशोक ने पहले ही प्रयोग किया था लेकिन गाँधी ने उसे एक नए तरीके से प्रयोग किया था ।यह सिर्फ़ शारीरिक हिंसा की बात नहीं है बल्कि मानसिक हिंसा पर उतना ही बल देता है ,क्योंकि शारीरिक हिंसा के ज़ख़्म भर जाते हैं लेकिन मानसिक हिंसा का दर्द हमेशा टीसता रहता है और कभी नहीं भरता है ।
इसी उम्मीद के साथ कि अहिंसा, हिंसा के सभी हथियारों पर न सिर्फ़ इस देश मे बल्कि पूरे विश्व मे भारी पड़ेगी ,आप सभी को गाँधी जयंती की मुबारकबाद।
सादगी और ईमानदारी के प्रेरक लाल बहादुर शास्त्री की जयंती की सभी को मुबारकबाद ।

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