सतीश कुमार सिंह ,समीक्षक,छत्तीसगढ़ छायावाद और छायावादोत्तर काल से लेकर समकालीन हिंदी कविता तक लंबी कविताओं का एक दौर चलता रहा है और आज भी नये पुराने सभी रचनाकार समय समय पर इसमें हाथ आजमाते रहे हैं । इसमें कोई दो राय नहीं कि इन लंबी कविताओं में कथ्य की नवीनता , भाषा और भाव […]Read More
लक्ष्मीकांत मुकुल हिंदी के उन कवियों में से हैं जिनकी चेतना किसान जीवन के कठोर यथार्थ से उत्पन्न है.जब अधिकतर कवि शहरी जीवन के इर्द-गिर्द उत्पन्न घुटन,टूटन और बिखराव को अपनी कविता के अंकुरण के लिए आधार-भूमि बना रहे वहीं लक्ष्मीकांत मुकुल किसान,किसानी,फसल और किसान और फसलों के मारे जाने का दर्द एवं टीस को […]Read More
आलोचक :सन्तोष पटेल अन्तरवृर्तिनिरूपमयी भाव सार्वभौमिकता से जुड़ा है। यानी ऐसा गीतिकाव्य जो व्यष्टि से समष्टि का भाव गेयता के साथ कांता सम्मत उपदेश वाली भावना से दूसरों तक सहजता से सम्प्रेषित हो। प्रो गमर ने गीतिकाव्य के बारे में लिखा है कि वह अन्तरवृर्तिनिरूपमयी कविता है जो व्यक्तिक अनुभूति से आगे बढ़ती है। डॉ […]Read More
सिद्ध कवियों की संख्या 84 थी। नाथों की 9 थी। सिद्ध और नाथ कवियों में सर्वाधिक शूद्र थे। मछुआरे, चर्मकार, धोबी, डोम, कहार, दर्जी, लकड़हारे और बहुत से शूद्र कहे जाने वाले कवि थे। रामचंद्र शुक्ल ने इनकी कविताओं को सांप्रदायिक माना और लिखा कि सिद्धों और नाथों की कविताएँ शुद्ध साहित्य नहीं है। अर्थात […]Read More







