अनिता चंद की कविताएँ
1.पुनर्जीवन”
काया पलट पेड़
पेड़ असहाय साक्षी बना सूखा खड़ा
न पत्ता न कोपल पतझड़ से ये घिरा
हर आने-जाने वाले पर नज़रें है टिकाये
एक आस लगाये कोई तो रुकेगा
उठाकर नज़रें भर देखेगा
हर कोई उसको अनदेखा सा किए
निकला जा रहा है पेड़ घूरता दूर तक उम्मीद लगाये
कसमसाता देख रहा है
यकायक आशा में बदली निराशा उसकी
उदासी छोड़ सोचने लगा
आख़िर मैं क्यूँ हूँ उदास ?
ये तो प्रकृति का वरदान है जिसने बनाया
काया पलट का प्रावधान है
धैर्य रख घबरा मत जल्दी ही बदलने वाली है
मूरत तेरी हरी-भरी होने वाली है सूरत तेरी,
ये ही लोग जो दूर हैं तुझसे,
जिन्हें वक़्त नही देखने का तुझको
पास तेरे एक दिन खुद ब खुद आयेंगे रुकेंगे,
भरेंगे सासें और सुकून के पल बिताएँगे
ये जगत स्वार्थी है सारा तू अपने पर रख विश्वास
इस सम्पूर्ण जगत का तू ही तो है रखवाला
तुझे तो अपने वस्त्र रूपी चोले को हर वर्ष है बदलना
स्वस्थ साँसों को देकर एक जीवित जीवन है रचना
पेड़ खुद से जुड़ गया— अरे तू कैसे स्वार्थी हो सकता है
तू इस जग के भ्रम में कैसे खो सकता है
चल देख मुड़कर अपनी काया को थोड़ा हिला डुला
लेकर अंगड़ाई हवा में ख़ुशियों की तरंग लहरा दे
कल कोपल निकलेंगी फिर पत्ते भी आयेंगे
तुझको हरा-भरा देख सब लौटेंगे तेरी छाँव में तेरी साँस भरेंगे
तुझे पूजेंगे ये दिन फिर पुनः आएँगे
जो आज हैं दूर तुझसे कल तेरे गुणगान गायेंगे
झूम ले अपनी काया पर
मुस्कुरा ले, थोड़ा सोच ले थोड़ा इतरा ले तेरे दिन
हरे भरे जल्दी ही अब आने हैं वाले
कोपल से निकलेंगे पत्तों से खिलखिलाएँगे लहरायेंगे…..!!
2-कोरोना-2019
ये कैसी चली जंग रे…..कोरोना ने करा तंग ये
घर में रहो बस घर में ही रहो……….!
घर में जी ही नहीं जीवित हो रहे हैं हम
मानते हैं कोरोना तूने हिला दिया, डरा दिया है हमको
हिंदुस्तानी हैं इस चुनौती को हिम्मत से स्वीकारते हैं हम
कोरोना तू कमज़ोर न समझ ताक़त को हमारी
भटक गये थे ज़रा पथ से हम
अपने घर आँगने से पुनः तूने मिला दिया हमको
भूल गये थे दौड़ धूप में हम क्या होता है बुज़ुर्गों का साथ
तीन पीढ़ियों का साथ मिलकर पुनः साथ रहना
सिखा दिया है हमको…….
डरना हमारी फ़ितरत नहीं हम हैं माने जाते शान्ति प्रिय जगत में
तुझे न जीतने देंगे भटक कर सड़कों पर ही तुझे समाप्त होना होगा
पथ होकर क़ायम फिर लौट कर जश्न आज़ादी का मनाएँगे हम
कोरोना तुझे न जीतने देंगे हम………!!
३- क्या यही प्यार ??
आँखों से नींद उड़ा जाये
हर मौसम प्रेम के गीत सुनाये
दीदार हो जाये अगर रूह से उसका
अँधेरा भी ख़ूबसूरत नज़र आये
उमंगों की तरंगों की दुनिया
हक़ीक़त में बदली सी दिखे
आईना भी खूब लुभाये
खूबसूरत अहसास लिए चाँद से बातें हों
उसका चेहरा चाँद पर उतर आये
पैर ज़मीं पर नही…..
खोये-खोये से होकर होश उड़ता जाये
ये अहसास प्यारा सा हर किसी को भाये
४- मर्यादा पुरुषोत्तम राम
दशरथ को प्राणों से प्यारे
शिष्यों में अति विशेष धनुर्विद्या में सर्वश्रेष्ठ
कौशल्या ने जन्में ऐसे स्वामी पुरुषोत्तम राम
गुरुओं का मान रखने वाले संयम का प्रतीक बने
ऐसे नाम सर्वोत्तम राम
माता पिता की आन निभाई आदेशों को सीमा बनाई
सीता संग की प्रेम-प्रीत सगाई कुल की मर्यादा निभाई
ऐसे स्वामी सर्वोत्तम राम
धर्म निष्ठा से कुल, परिवार व भाईचारे का प्रतीक बने
ऐसे स्वामी सर्वोत्तम राम
बानरों के रक्षक बनकर हृदय में दे दिया अपने वास
ऐसे स्वामी सर्वोत्तम राम
सबरी के झूठे फल खाये अहिल्या का किया उद्धार
ऐसे स्वामी सर्वोत्तम राम
अहंकार को मार गिराया बुराई का किया सर्वनाश
ऐसे स्वामी सर्वोत्तम राम
५- पवन
नौकाओं का रुख़ मचलता है समुन्दर का छोर पाने को
लहरें उछलती हैं पवन की पतवार बनाने को
मुसाफ़िर का क्या वो तो सवार है नौका पर
अपनी मंज़िल पर उतर जाने को
कभी मंज़िल पास तो कभी दूर नज़र आती है
दिल की धड़कन सी कभी उछलती कभी डूबी सी कभी लहराती है
नौका तेरी माँझी भी तेरा मुसाफ़िर तो आने जाने हैं
इस समुन्दर के नीचे मिलते अनमोल ख़ज़ाने हैं
जो हाथ लगा वो खारा पानी है चलती पवन वो मस्तानी है
समुन्दर की रेत पर सपनों के महल बनते हैं
लहरों का क्या पता कब मिटा जाए निशान तेरे
रेत पर न खड़ा हो तू किसी भ्रम किसी शान से
सब मिट जाएगा जब आयेगी पवन साथ लेकर लहरें
पल में मिटा जायेंगी नामों निशान तेरे….!!