क्रांतिकारी विचारक और कवि ‘ गुरू रैदास ‘
मन चंगा तो कठौती में गंगा‘ कहने वाले रैदास बनारस के मंडुआडीह नामक एक गाँव मे रघुराम के घर पैदा हुए थे,इनकी माता का नाम करमा देवी और पत्नी का नाम लोना देवी था। हालाँकि कुछ लोग कतिपय कारणों से गुरू रैदास को पश्चिम भारत का भी मानते हैं ।
रैदास के जन्म के बारे में कुछ अवैज्ञानिक और पाखंड फैलाने वाले तथ्य भी मिल जाएँगे ।जैसे भविष्य पुराण के अनुसार सूर्य के दूसरे पुत्र पिंगलापति ने मानदास चर्मकार के यहाँ जन्म लिया जिनका नाम रैदास पड़ा ।कोई कहता है कि रैदास पूर्वजन्म में ब्राह्मण थे लेकिन माँस खाने के कारण चर्मकार के यहाँ इन्हें जन्म लेना पड़ा।ऐसी ही न जाने कितनी ,मनगढ़ंत, बेसिरपैर की कहानियाँ हैं इनके जन्म के बारे में,जिनको सुनकर हँसी आती है।
हद तो तब हो जाती है जब रैदास -पुराण बताता है कि इनका जन्म माँ के हाथ के फफोले से हुआ। कोई फफोले से पैदा हो सकता है भला ?
गुरु : कुछ लोग रामानंद को कबीर की तरह रैदास का गुरू भी कहते हैं ।प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र सिंह ने डॉ मोहन सिंह की किताब ,’कबीर- हिज़ बायोग्राफ़ी’ के हवाले से इसका खंडन किया।इस किताब के अनुसार कबीर के पैदा होने से कोई 40 बरस पहले रामानंद मर चुके थे । वैसे भी तथाकथित निम्न जाति वाले को कौन ज्ञान देना चाहेगा ?
क्रांतिकारी विचार धारा :रैदास, कबीर और नानक दास के समकालीन थे ।वे कबीर की तरह ही क्रांतिकारी विचारधारा के थे ।वे ऊँच- नीच,जात- पात में विश्वास नहीं रखते थे ।जन्मगत उच्चता या निम्नता के सिद्धान्त में उनका विश्वास नहीं था –
‘रविदास जनम के कारने होत न कोउ नीच ।’
किसी जाति की पूजा के बज़ाय वे गुण पूजा की बात करते थे –
‘ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुण हीन
पूजिए चरण चंडाल के जो होए प्रवीण ।’
वहीं तुलसी को देखिए, क्या कहते हैं –
‘पूजहि विप्र शील गुण हीना
शूद्र न गुण गन ज्ञान प्रवीना ।’
तीर्थ व्रत,पूजा पाठ जैसे बाहयाचारों का उन्होंने खंडन किया है।
‘’दूधु त बछरै थनहु बिटारिओ
फूलु भवरि जलु मीन बिगारिओ
माई गोविंद पूजा कहा लै चरावउ
अवरू न फूलु अनूपु न पावऊ ।’’
गुरु रैदास ने पूजा की औपचारिकता का बहुत ही सहज और स्वाभाविक वर्णन किया है ।
इसी प्रकार न तो अड़सठ तीर्थों में नहाने की ज़रूरत है और न ही बारहों शिलाओं की पूजा करने की ,बल्कि आचरण गत पवित्रता ज़्यादा ज़रूरी है ।
‘’जे ओहु अठिसठि तीरथ नहावै
जे ओहु दुआदस सिला पूजावै ।’’
रैदास की बाणियो से ही लगता है कि रैदास ने ऐसे राज्य की स्थापना करना चाहा ,जहाँ ऊचँ-नीच, शोषण आदि का कोई नाम नहीं हो ।
रैदास और मीरा : गुरू रैदास मीरा के गुरु थे ।राजस्थान और गुजरात में उनके बहुत फॉलोवर्स थे ।जब भारत भर मे खासकर राजस्थान मे विधवा को पति की लाश के साथ जिन्दा जला दिया जाता था, ऐसे में एक विधवा मीरा को शिक्षा देना किसी क्रांति से कम नहीं था ।ज़ाहिर है उन्हें काफ़ी विरोध का भी सामना करना पड़ाहोगा ।
बुद्ध के नज़दीक :
’बिन देखे उपजे नही आशा
जो देखू सो होय विनाशा ।’’
मतलब जो दिखाई नही देता उसके प्रति भावना पैदा नही होती तथा जो दिखाई देता है वह नश्वर है, उसका अन्त होना निश्चित है।यह बात उन्हें अनुभववाद के क़रीब लाता है।जो उन्हें बुद्ध के नज़दीक भी लाता है ।
साहित्य :दसवें गुरू गोबिन्द सिंह ने अपने कार्यकाल मे समस्त भारत के सन्तों की वाणी को ‘‘गुरू ग्रन्थ साहिब’’ मे संकलित किया था ।जिसमे गुरू रैदास के 41 पदों को शामिल किया गया ।यह माना जाता है कि गुरू रैदास 100 वर्षो से भी ज्यादा ज़िंदा रहे ।फिर यह प्रश्न उठता है कि क्या 100 वर्षों से अधिक के जीवनकाल में रैदास मात्र 41 पद ही रच पाए। अब यह संभावना बनती है कि या तो उनके पद चुरा लिये गए या उन्हें नष्ट कर दिया गया ।
अंत: यह कहा जाता है कि झाला रानी के निमंत्रण पर वे चित्तोड गए और वहाँ बड़ी चतुराई से एक षडयन्त्र के तहत शरीर के भीतर जनेऊ दिखाने के बहाने भरे दरबार मे गुरू रैदास का सीना चीर कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी गयी और यह कहला दिया कि गुरू ने भीतर का जनेऊ दिखाकर शरीर त्याग दिया । किसी शरीर के अंदर जनेऊ होना तो हास्यास्पद ही होगा तो क्या रैदास की हत्या कर दी गई???
जो भी हो हुआ लेकिन रैदास की अमर वाणियाँ भारतीय समाज के लिए हमेशा ज़िंदा रहेंगी और रैदास को एक क्रांतिकारी विचारक और कवि के रूप में याद किया जाता रहेगा ।