गली -गली ,गाँव -गाँव में

 गली -गली ,गाँव -गाँव में

विमलेश गंगवार

आप वरिष्ठ कथाकार हैं जिनके दो उपन्यास और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ।तीसरा उपन्यास शीघ्र प्रकाश्य है ।


सुधा की हालत बिगड़ती जा रही थी ।बेटा सुबह से सुधा को लेकर कई अस्पतालों के चक्कर लगा रहा था ।पर सभी ने भर्ती करने से मना कर दिया था ।
अब किसी दूसरे अस्पताल में एडमिट कराने के लिए उसने गाड़ी स्टार्ट की ।
सोच रहा था कोई दोस्त भी याद नहीं आ रहा है जो अस्पताल में भर्ती कराने में मदद करा सके ।
एक नये अस्पताल के आगे उसने गाड़ी रोक दी ।माँ को कुछ देर इंतजार करने के लिए कह कर वह अस्पताल के अन्दर आ गया ।
बात चीत करने में लगभग पन्द्रह मिनट लग गये ।वह खुशी से पागल होता हुआ सा माँ के पास आया
और बोला
“माँ जल्दी उठो, यहाँ बैड खाली है और वेंटिलेटर भी है ।”
“अब जल्दी करो माँ ।”
उसने सुधा का हाथ पकड़ कर उठाने की कोशिश की
पर यह क्या ! सुधा एक तरफ लुढ़क गई !
उसे दवा के पर्चे पर माँ की हैन्ड राइटिंग दिखायी दी
वह पढ़ने लगा ।टेड़े मेंड़े शब्दों में लिखा था ……
” इस देश में मन्दिर मस्जिद पहले से ही बहुत हैं ।अब गली गली गाँव गाँव में अस्पताल बनवा दो ।ताकि लोग मेरी तरह मरने को मजबूर ना हों ………..बेटा यह किसी बहुत बड़े आदमी को जरूर दे देना ,जिस से मेरी आवाज वहां तक पहुंच जाये ।”
पेन डाक्टर के पर्चे पर खुला पड़ा था ।माँ की पलकें नहीं झपक रहीं थीं ।बस आंखें खुली थी पूरी की पूरी ।माँ की ऑखे बड़ी-बड़ी बहुत सुन्दर थी पहले से ही ………
राजीव माँ के शव पर सिर रख कर रो पड़ा बड़ी जोर जोर से ………

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