डॉ अवंतिका की कविताएँ

लखनऊ,उत्तर प्रदेश की डॉ अवंतिका सिंह ने हिंदी के प्रसिद्ध कवि और लेखक डॉ हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा पर शोधकार्य किया है।इसके साथ ही उन्हें सामाजिक,आर्थिक विषयों पर लेखन, बाल साहित्य लेखन,कविता और लघुकथा लेखन पसंद है।पर्यावरण के प्रति बेहद जागरूक हैं। ऑल इंडिया रेडियो,लखनऊ में हिंदी की वार्ताकार और कुशल सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।

    【 ममता 】

जीवन की आपा-धापी में
संभव है कभी भूल भी जाऊँ
तुम्हारा आना अपने आंगन में,
पर, कहाँ भूल सकती हूँ!
तुम्हारा खिलखिलाकर हँसना,
गले से लिपट जाना,
कभी गालों को चूम लेना;
यह हक़ है तुम्हे
कि तुम मुझे झकझोरकर
याद दिला दो
कि आज के दिन
तुम आये थे मेरे जीवन में;
तुम्हारे आगमन से
मेरी जीवन बगिया
महक उठी थी,
मचल उठी थी मैं
तुम्हे गोद में खिलाने को,
थपथपा कर
लोरी सुनाने को,
माथा चूम कर
सीने से लगाने को
याद है वो सब कुछ
वह सब कुछ आज भी ,
एकदम ताज़ा सा!

【आखिर माँ ऐसी ही होती है …】

रेलगाडी के रफ़्तार पकडते ही
मन भी एक गति पकड लेता है
मासूम चेहरा, जवान दिखाई देता है
कुछ शब्द होठो तक तो कुछ आँखो में छुपा लेती हैं ,
आखिर माँ ऐसी ही होती है।

यह भी नही कह सकती कि मत जा
कहते हुए जुवा रुक जाती है
बस हाथ हिला ,हौले से मुस्कुरा
बहुत कुछ अनकहा मन में छुपा लेती है
आखिर माँ ऐसी ही होती है।

आने वाले कल के लिये
धीरे धीरे जोश से भरकर
अपने सपनों को नये सिरे से संजो कर
आंगन में एक नया सपना बो लेती है
आखिर माँ ऐसी ही होती है।

कुछ होनी ,अनहोनी,भूला बिसरा याद कर
सुनहरे भविष्य को जानकर
सबके स्वस्थ्य,सुरक्षा,शांति के लिये
मन्दिर में एक दिया ज़ला देती है
आखिर माँ ऐसी ही होती है।

    【   जीवनसाथी】

मैं और तुम
बंधे आज
जीवन की उस डोर से
जिससे छूटना
अब आसान नहीं !
मैंने माना कि
मैं तुम्हारी नियति हूँ
लेकिन तुम भी तो मेरा भाग्य हो
मेरे जीवनसाथी,सच्चे मीत
और,
एक विश्वास हो !
तुम्हारे हाथों में
महफूज है जीवन मेरा
गर नहीं तुम साथ
तो जीना भी दुश्वार
रहें सदा हम साथ
हर मंजिल हो आसान,
माँगू दुआ यही
दिन और रात ।

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