तेज प्रताप नारायण की कविताएँ

 तेज प्रताप नारायण की कविताएँ

1.एक समय के बाद
असंभव हो जाता है
सच्चे प्यार का मिलना
फूलों का महकना
निग़ाहों का
निगाहों से मिलना
पलकों का उठना -गिरना

स्नेह की बूंदे
गिरनी बंद हो जाती हैं
सावन में

बिजलियों का चमकना
बंद हो जाता है
बादल में

मासूमियत और मोहक अदाएं
दिल को बिल्कुल न भाएं
पहुंच से जो दूर दिखता हो
उसे पाने की दौड़ लगाएं

स्वहित के कारोबार में
लौकिक कार्य व्यापार में
घिरने लगते हैं
उहापोह की गर्मी में
एहसास घुलने लगते हैं

और एक बार विकल्पहीन हो
उद्दत हो जाता है मन
लौटने के लिए
उस बिंदु की ओर
प्रेम सिंधु की ओर
लहरों में मिलने के लिए
फिर से खिलने के लिए

पता नहीं होता
असंभव से अ हटेगा
या असंभव का समय
चलता रहेगा ।

2.

कविता रोटी नहीं दिला सकती है

कविता में ताकत है
जो तानाशाहों के सिंहासन हिला सकती है
कविता समय का इतिहास लिख सकती है

कविता ये प्रयास करती है
कि
जिन मजदूरों ने रेल की पटरियां बिछाई है
उनको रेलों में बैठने की जगह मिले
जो किसान अन्न पैदा करता है
वह भूखा न रहे
या गगन चुंबी इमारतों में खून पसीना लगाने वाले मज़दूरों को
रहने को घर मिले
और सड़कों को बनाने वालों को
भी चलने की जगह मिले

कविता रचने वाले को
कविता भी रचती है
शब्द केवल कागज़ पर ही नहीं उतरते हैं
ह्रदय में भी उथल पुथल मचाते हैं
दिमाग के सुषुप्त न्यूरॉन्स को जगाते हैं
कविता बिच्छू के डंक सी चोट करती है
बहुत तिलमिलाहट पैदा करती है
अकुलाहट पैदा करती है

कविता उस तड़ित की तरह है
जिसकी रौशनी में तथ्य जगमगा जाते हैं
अन्याय के दूत हड़बड़ा जाते हैं

कविता बहुत ताकतवर है
पर अपने रचने वाले को
रोटी नहीं दिला सकती है
उसकी भूख नही मिटा सकती है ।

3.Im sadiq khan
Iam mayor of London
London has chosen
Hope over fear
Unity over division
Peace over extremism
Politics of fear is not welcome in my city
Iam Barack husaain obama
iam president of USA

Iam Dr APJ kalam
I was president of India

Iam Dr Hamid Ansari
iam Vice President of india

I wish
Some day
People can say
Iam nihal singh
Iam Pakistani sikh
Iam president of pakistan

Iam Ram chandra
Iam pakistani hindu
Iam mayor of islambad

Iam Christopher
Iam Malaysian Christian
Iam president of malaysia
So on and so forth

When people will understand
That as much as they belong to me
I belong to them also
When we will have that feeling of belonginess.

4.

    कहते हैं गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ना चाहिए
जो बात बीत गई उसके पीछे नहीं पड़ना चाहिए
बिलकुल सच है यह कथन
अग्रगामी हो सोच और आगे बढ़ते रहें
हर क़दम

लेकिन ,कई बार होता है ऐसा
सत्य प्रकट होता है विद्युत जैसा
जब खेती करने के लिए हल जोतता है कोई किसान
या पुरातत्व विभाग का होता है
कोई ख़ुदाई अभियान
और निकल आती है
कोई ध्यानमग्न बुद्ध की मूर्ति
लेटी हुई
या उपदेश देती हुई
या मिलता है कोई शिलालेख
जिस पर लिखा होता है
इतिहास का कोई सत्य
अष्टांगिक मार्ग का कोई नियम

निकल आती है सिंधु घाटी में बुद्ध के पहले बुद्ध की बात
नहीं निकलता कुछ और भी
सिध्द कर सके जो कभी
इस देश की प्राचीन सभ्यता क्या कुछ और थी ?
जिसको मुख्य कहा जा रहा है
क्या वह बात गौण थी ?

कई अवधारणाएं
सांस्कृतिक भावनाएं
ऐतिहासिक मान्यताएं
शीर्षासन में खड़ी हैं
सच के ऊपर झूठ की मोटी पर्त चढ़ी है

पता नहीं क्या हुआ होगा ?
जिसने करुणा की मूर्ति के विचारों को छला होगा
कौन ज्ञान में प्रकाशित होने के बज़ाय
ज्ञान से ही जला होगा
उन विचारों को थोड़ा तोड़ मोड़ कर
एक अलग भाषा में कुछ जोड़ तोड़ कर
कोई सिद्धान्त बनाया होगा
पूरे देश में फैलाया होगा

पता नहीं क्या हुआ होगा?
कोई प्रलय आया होगा
या किसी आक्रांता का आक्रमण हुआ होगा

जो भी हुआ हो
चाहे सूरज डूबा हो
या चाँद जला हो
धरती रुकी हो या
आसमान चला हो
जो भी हुआ
उसे बदल नहीं सकते
कोई टाइम मशीन तो बनी नहीं
फिर पीछे की ओर चल नहीं सकते

हाँ! आगे का भविष्य हमारे हाथ है
बुद्ध की करुणा और अहिंसा
क्यों न अपने साथ हो
क्यों न फिर तर्क को अपनाया जाए
मध्य मार्ग का रास्ता बनाया जाए
सब जिये और सबको जीने दें
ज्ञान का रस पीने दें
सभी का विकास हो
इंसानियत का साथ हो ।

5. मेरे घर में किसी महान पुरुष की तस्वीर नहीं है
मैंने उनकी कभी पूजा आरती नहीं की
दीपक नहीं जलाया
अगर बत्ती नहीं सुलगाई

अगर छोटे बच्चों को बताना होता है
महापुरुष के बारे में समझाना होता है
तो उनकी किताबें दिखाता हूँ
उनके सामाजिक योगदान को बताता हूँ
किताब के कवर पेज पर उनकी फोटो भी दिख जाती है
और दिमाग़ में एक अक्स उभर आती है

मैं पूजने में नहीं बल्कि
उनका जीवन दर्शन समझने में विश्वास करता हूँ
तस्वीर लगाने में नहीं
उनकी किताब पढ़ने में विश्वास रखता हूँ
दर्शन को जीवन में उतारने का प्रयास करता हूँ
और धीरे-धीरे ही सही
‘अत्ता दीपा विहरथ’ की ओर बढ़ता हूँ ।

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