दशहरा :सत्य /असत्य का संघर्ष या कुछ और ?

तेज प्रताप नारायण

दशहरा की आप सभी को बधाई और शुभकामनाएं । सत्य की असत्य पर विजय होती रहनी चाहिए ।सत्ता और समाज मे फैल रहा असत्य का अँधेरा मिटना ही चाहिए । पर सत्ता के नशे में लोग अंधे हुए जा रहे हैं सच को मिटा रहे हैं और झूठ की फसल उगा रहे हैं । उम्मीद तो नहीं दिखती कि सच की जीत होगी । झूठ और भ्र्ष्टाचार का आकार और हाहाकार बढ़ता जा रहा है और सत्य की आवाज़ें कहीं कोने में दुबकी हुई सी जान पड़ती हैं । तो क्या हम पुतले ही जलाते रहेंगे या उसके आगे भी कुछ करेंगे ।

वैसे दशहरा का अर्थ इस सेंस में भी हो सकता है कि दशों दिशाएँ हरी हों ।प्रदूषणहीन प्रकृति हो ,क्यों कि सबसे बड़ा ‘ मी टू’ तो हम सभी उस मदर नेचर का ही कर रहे है जो हमें हवा ,पानी और रहने के लिए स्थान देती है।अब नेचर फेस बुक , व्हाट्सएप्प और ट्विटर पर तो उसके साथ हो रहे ‘ मी टू’ को आकर लिख तो नहीं सकती इसलिए कभी भी आकर सरप्राइज दे जाती है ।

सामना में एक लेख के अनुसार रावण का वास्तविक नाम रमन था ।अर्थात वह व्यक्ति जो राम की आराधना करता रहा हो ,उनका नाम जपता रहा हो ।बाद में धीरे- धीरे नाम बदल कर रावण हो गया । ज़रूरी नहीं कि वह राम दशरथ पुत्र राम रहे हो वें कबीर के राम जैसे राम भी हो सकते हैं । यह तो सब मानते है कि रावण की लंका सोने की थी मतलब लंका ऐश्वर्य से परिपूर्ण थी ।भारत को भी सोने की चिड़िया कहकर सभी गर्व करते हैं । तो सोने की लंका का राजा हेय भरी दृष्टि से क्यों देखा जाना चाहिए ।
कुछ और बातें ध्यान देने योग्य हैं जिनके आलोक में राम रावण के युद्ध को देखा जा सकता है :

i.परशुराम ने 21बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया ।
ii. जनक की सभा में राम परशुराम के प्रिय शिव धनुष को तोड़ देते हैं । परशुराम को राम के सामने झुकना पड़ता है ।
iii.राम के भाई लक्ष्मण रावण की बहन सूर्पणखा की नाक काट लेते हैं । नाक कटना किसे कहते हैं यह हम सभी जानते हैं ।
iv.रावण सीता का हरण कर लेते है और उन्हें अलग अशोक वाटिका (जहाँ शोक न हो ) में रखा जाता है और त्रिजटा जैसी महिला सैनिक को उनकी सुरक्षा में लगाया जाता है जो सीता से पुत्री जैसा व्यवहार करती है।
V) रावण से युद्ध होता है ।जिसमें राम ,रावण को मार देते हैं ।
Vi) विश्वामित्र और वशिष्ठ का युद्ध पहले ही कामधेनु गाय के लिए संघर्ष हुआ था।

इन सारे प्रसंगों से क्या ऐसा नहीं लगता कि इन सारे संघर्षों में सत्य और असत्य के बीच नहीं बल्कि समाज के दो वर्गों/जातियों या वर्णो के मध्य संघर्ष ज़्यादा था । जातीय संघर्ष तो आज भी ज़ारी है उसके संदर्भ भले ही बदल गए हों ।

जो भी हो ,एक बार सोचना तो बनता ही है ।

असत्य पर सत्य की जीत होती रहे ।इसके लिए सभी को पुनश्च हार्दिक शुभकामनाएं ।पुतले जलाते रहिए ।दशहरा मनाते रहिए ।

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1 Comment

  • बहुत बढ़िया लिखा….बिचारों को झकझोर दिया…आपके इस छोटे से लेख ने…
    ऐसे ही लिखते रहिये

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