धरती से बहुत दूर एक धरती

अशोक वर्मा ,भारतीय पुलिस सेवा

कवि और लेखक

पिछले साल इन्हीं दिनों अख़बारों में अत्यन्त हर्षानेवाली एक ख़बर छपी थी। ख़बर थी कि वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड में एक ऐसा ग्रह खोज लिया है, जिसमें जीवन की संभावनाएँ हैं। इसका नाम के2- 18बी है। अब तक खोजे गए लगभग 4000 ग्रहों में यह ग्रह मानव-जीवन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। यह पृथ्वी से आकार में दोगुना और वजन में आठ गुना बड़ा है। एक लाल बौने तारे के2- 18 का यह ग्रह है और उसके चक्कर लगाता है। पृथ्वी के 33 दिन में यह अपने तारे का एक चक्कर लगा लेता है, यानी पृथ्वी के 33 दिन के बराबर इसका एक वर्ष होता है। इसके वायुमण्डल में पानी है। तापमान 0 से 40 डिगरी सेल्सियस है। यह ग्रह अपनी पृथ्वी से लगभग 110 प्रकाशवर्ष दूर है। यह हमारे सौरमण्डल के बाहर है। इस ग्रह को इपिक (EPIC) 201912552बी भी कहते हैं। अतिउत्साही कुछ लोग इसे ‘सुपर अर्थ’ भी कहते हैं।
इस उपग्रह की खोज ‘केपलर स्पेस टेलीस्कोप’ से वर्ष 2015 में हुई थी। कनाडा के माॅण्ट्रियाल विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी काॅलेज लन्दन के अनुसन्धानकर्ताओं के दो अलग-अलग दलों ने इसके सम्बन्ध में अपने विश्लेषणात्मक अध्ययन किए हैं। 11 सितम्बर, 2019 को ‘नेचर एस्ट्रोनाॅमी’ मैगज़ीन में इन अध्ययनों के विश्लेषण को प्रकाशित किया गया है। इस क्षेत्र में अब तक हुए अध्ययनों में सबसे अधिक उत्साहवर्धक परिणाम इस ग्रह के अध्ययन का ही रहा है।
आइए, इस ग्रह पर पहुँचने के सम्बन्ध में हम विचार करते हैं। यह ग्रह हमारी पृथ्वी से लगभग 110 प्रकाशवर्ष दूर है। प्रकाश की गति लगभग 2,99,792 किमी प्रति सेकंड है। प्रकाशवर्ष,यानी एक वर्ष में अपनी उक्त गति से प्रकाश द्वारा तय की गई दूरी है। इस हिसाब से एक मिनट में प्रकाश 2,99,792×60 किमी, एक घंटे में 2,99,792×60×60 किमी, एक दिन में 2,99,792×60×60×24 किमी और एक सामान्य वर्ष में 2,99,792×60×60×24×365 किमी की दूरी तय करेगा। इसी प्रकार 110 प्रकाशवर्ष में प्रकाश कुल 2,99,792×60×60×24×365×110 किमी की दूरी तय करेगा।
अब मानव द्वारा बनयी सबसे अधिक तेज गति से चलनेवाली वस्तु के साथ इस दूरी की तुलना करते हैं। नासा द्वारा प्रक्षेपित हेलियोस-2 अब तक का सबसे तेज स्पेसक्राफ्ट था, उसकी गति 2,52,800 किमी प्रति घण्टा थी। इस प्रकार हेलियोस-2 के द्वारा एक दिन में 2,52,800×24 किमी की दूरी और एक वर्ष में कुल 2,52,800×24×365 किमी की दूरी तय की जा सकती है। गणना करने पर लगभग 4,69,610, यानी लगभग चार लाख सत्तर हज़ार वर्ष में मानव अपनी सबसे अधिक तेज गति से चलने पर के2- 18बी पहुँच पाएगा।
आइए तुलना करते हैं कि हमारे अपने सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट और 20 मिनट, यानी कुल 500 सेकण्ड, और चन्द्रमा का प्रकाश पृथ्वी तक पहुँचने में मात्र 1.3 सेकण्ड लेता है। जबकि के2-18बी ग्रह यानि ‘सुपर अर्थ’ का प्रकाश पृथ्वी तक पहुँचने में 110 प्रकाशवर्ष लेता है। एक वर्ष में कुल 60×60×24×365 यानि 3,15,36,000 सेकण्ड होते हैं, अर्थात् 110 वर्ष में कुल 3,46,89,60,000 सेकण्ड होते हैं। जबकि हम अभी तक मात्र 1.3 सेकण्ड की दूरी पर भ्रमणशील चन्द्रमा पर भी सही सलामत नहीं पहुँच सके। ऐसे में अरबों सेकण्ड की दूरी को तय करने की सोचना बेवकूफ़ी के सिवा कुछ नहीं है। उचित होगा हम अपनी पृथ्वी के पर्यावरण की मन, वचन और कर्म से रक्षा करें।
दुनिया के वैज्ञानिकों की राय है कि पृथ्वी पर मानव का जन्म अब से मात्र दो लाख वर्ष पहले हुआ है। उक्त गणना से स्पष्ट है कि मानव के पास पृथ्वी के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। अपने जीवन के दो लाख वर्षों में ही मानव ने जब अपनी विलुप्ति की पूर्ण पृष्ठभूमि लगभग तैयारकर ली है, तब भला वह के2- 18बी वह कैसे पहुँच पाएगा, जबकि वहाँ पहुँचने के लिए चार लाख, उनहत्तर हज़ार, छः सौ, दस वर्ष आवश्यक हैं? इसलिए हम सभी को चाहिए इस पृथ्वी के सभी जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों और प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षा प्राणपण से करें, और अपने आपको प्रकृति के अन्य प्राणियों की तरह एक प्राणी मानें। उनसे बेहतर कदापि नहीं। तुलना करने की मानवीय वृत्ति से अपने आपको पूरी तरह मुक्त करें, क्योंकि यह प्रकृति अंशी है, हम अंश हैं। इस प्रकृति में सभी बराबर हैं, न कोई श्रेष्ठ है और न कोई हीन है। तुलनावृत्ति मानव की क्षुद्रता और धूर्तता की उपज है।
इस प्रकृति का इसके मूल स्वरूप में संरक्षण तभी सम्भव हो पाएगा, जब हम अपनी जनसंख्या के बोझ को कमकर पाएँगे। जनसंख्या कम किए बिना प्राकृतिक संसाधनों पर हमारी निर्भरता कम नहीं हो सकती और जब तक प्राकृतिक संसाधनों पर हमारी निर्भरता कम नहीं होती, तब तक प्रकृति को संरक्षित करने की बात करना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है। प्रकृति अपने सभी जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों और संसाधनों के साथ तभी स्वस्थ रह सकती है, जब हम प्रकृति के समस्त अवयवों के लिए भी जगह छोडें! प्रकृति और पर्यावरण के स्वास्थ्य के बिना हमारा स्वस्थ होना कहाँ सम्भव है। प्रकृति और उसके तत्व ही हमारे संरक्षक हैं, कोई दैवीय शक्ति नहीं!!!

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