सामाजिक न्याय के महानायक राजऋषि छत्रपति शाहू जी महाराज
छत्रपति शाहू जी उन दुर्लभ शासकों में थे जिन्होंने अपनी प्रजा को परिवार की तरह समझा और उनके दुःख दर्द को मिटाने का भरसक प्रयास किया । राजा होकर भी समानता के प्रति ऐसा समपर्ण और कार्य विश्व मे शायद कहीं मिले । सच पूछिए तो देश को शाहू राज्य चाहिए ।ऐसा राज्य जो इंसान को इंसान का दर्जा देने में सक्षम हो ।
शाहू जी के राज्य में एक सुंदर समाज की परिकल्पना साफ़ साफ़ देखी जा सकती है ।शाहू जी ने शिक्षा और रोज़गार के लिए बहुत कुछ किया। उन्होंने न केवल शिक्षा को सस्ता किया बल्कि अंततः शिक्षा को सबके लिए मुफ़्त बनाया ।केवल शिक्षा मुहैय्या कराना ही उनका उद्देश्य न रहा ,रोज़गार देना भी उनके एजेंडे में शामिल था।
1902 में शाहू महाराज ने पिछड़ों के लिए कोल्हापुर शासन प्रशासन में 50 % आरक्षण की व्यवस्था की ।इसका प्रभाव यह हुआ कि शासन पशासन में पिछड़े तबकों का प्रतिनिधित्व बढ़ा । शाहू जी के इस कदम का बहुत विरोध हुआ ।लोकमान्य तिलक जैसे व्यक्ति ने केसरी समाचार पत्र के संपादकीय में इसे अपरिपक्व क़दम बताया और आश्चर्य व्यक्त किया कि शायद शाहू का दिमाग़ ख़राब हो गया है।
शाहू जी जब 1894 में वे गद्दी पर बैठे थे तब कोल्हापुर के प्रशासन में 90 प्रतिशत से अधिक अधिकारी ब्राह्मण जाति के थे और केवल 10 परसेंट गैर ब्राह्मण जातियां थीं जिसमें ब्रिटिश अधिकारी,पारसी आदि भी थे । यही कारण रहा होगा कि शाहू जी ने इसे ‘ ब्राह्मण ब्यूरोक्रेसी ‘कहा था ,जब कि यह मराठा राज्य था लेकिन शासन-प्रशासन में मुश्किल से कोई मराठा था । इसके बाद भी जब आरक्षित सीट के लिए पर्याप्त लोग मिलने मुश्किल हुए तब उन्होंने 1917 में सारे बच्चों के लिए मुफ्त प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था शुरू की । उन्हें पता चला कि राजाराम हाइस्कूल से जुड़े हॉस्टल केवल कहने भर के लिए सभी के लिए खुले हैं और वास्तव में वे केवल एक विशेष जाति के बच्चों को ही रहने देते थे तब उन्होंने अलग- अलग समुदायों के लिए अलग- अलग हॉस्टल की व्यवस्था की ।उन्होंने 21 हॉस्टल कोल्हापुर में बनवाए । 1922 में अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने 420 स्कूलों की स्थापना में सहयोग दिया ।जब वे राजा बने थे तो राजाराम हाईस्कूल में सिर्फ़ 7.6% छात्र ग़ैर ब्राह्मण थे जो 1922 तक 37.22 % हो गए । सामान्य प्रशासन में गैर ब्राह्मण जातियों की संख्या 5.67% से 62.11% तक बढ़ी ।
1902 के इस अधिनियम का प्रभाव आज़ादी के समय से लेकर अब तक है । इसका प्रभाव अब तक देखा जा सकता है ।कुछ विद्वानों का मानना है कि संविधान लिखते वक्त डॉ अम्बेडकर के मन में शाहू जी द्वारा लागू आरक्षण संबंधी नियम ज़रुर रहे होंगे । मंडल आयोग की रिपोर्ट हो या 73वां और 74वां संविधान संशोधन हो जिसके तहत पंचायत में औरतों को 33 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया है,इन सबमें साहू जी द्वारा 1902 में लागू नियम का प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जा सकता है ।
1902 के इस अधिनियम की नींव तभी रखी जानी शुरू हो गई थी जब 1882 में ज्योतिबा फुले ने हंटर कमीशन के समक्ष माँग रखी थी जिसमें शिक्षा और लोक व्यवस्था को शुद्ध करने की बात कही गई थी ।
शाहूजी ने पिछड़े वर्गों के मेधावी छात्रों के लिए कई स्कॉलरशिप शुरू की । पाटिल या गांव के मुखिया के लिए विशेष स्कूल खोले जिससे उन्हें बेहतर प्रशासक बनाया जा सके ।
छत्रपति शाहू जी सभी वर्गों की समानता की प्रबल वक़ालत करते थे ।उन्होंने ब्राह्मणों को विशेष दर्ज़ा देने से मना कर दिया था । उन्होंने ब्राह्मणों को राजपुरोहित के पद से हटा दिया था जब पुरोहितों ने ग़ैर ब्राह्मण के लिए धार्मिक कर्मकांड करने से मना किया । साहू जी ने एक युवा मराठी स्कॉलर को ‘ क्षत्र जगदगुरु ‘की टाइटल देकर राजपुरोहित के रुप में नियुक्त किया । शाहू जी का सभी वर्गों को शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करना और एक गैर ब्राह्मण को राजपुरोहित का दर्जा देना अभिजात्य वर्ग को नही भाया था।
1916 में शाहू जी ने डेक्कन रैय्यत एसोसिएशन की स्थापना की जिसका उद्देध्य था गैर ब्राह्मण लोगों को राजनीतिक अधिकार और राजनीति में उनकी समान भागीदारी सुनिश्चित करना था । उन्होंने फुले के सत्यशोधक समाज को काफी संरक्षण दिया । उन्होंने एक राजकीय आदेश निकाला जिसके तहत समाज के हर तबके को समान अधिकार देने की बात कही गई और सार्वजनिक स्थलों जैसे कुआं ,तालाब ,स्कूल और अस्पताल आदि में अछूतों के साथ किसी तरह के भेदभाव की मनाही की गई थी । शाहू जी ने अंतरजातीय विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की । शाहू जी ने कोल्हापुर में जगह जगह पिछड़ों वर्गों द्वारा होटल और चाय की दुकानें खुलवायीं जिसमें वे ख़ुद चाय पीने जाया करते थे । इस कृत्य से शाहू जी लोगों को संदेश देकर ऊंच नीच की भावना को कम करना चाहते थे ।पहले राजस्व वसूलने का काम कुलकर्णी करते थे जिनकी नियुक्ति वंशानुगत होती थी और किसानों का बहुत शोषण होता था । शाहू जी ने इस प्रथा को हटाकर पटवारी प्रथा का चलन शुरू किया और किसानों को कुलकर्णी प्रथा के शोषण से मुक्ति दिलाई ।
स्त्रियों की स्थिति को सुधारने हेतु शाहू जी ने कई फैसले लिए। देवदासी प्रथा को प्रतिबंधित किया,विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान किया और बाल विवाह की प्रथा को ख़त्म करने का प्रयास किया ।
उन्होंने कई सारी परियोजनाएं शुरू की जिससे जनता आत्मनिर्भर हो जिसमें : छत्रपति शाहू स्पीनिंग एंड वीविंग मिल , किसानों के लिए कोआपरेटिव सोसाइटी ,किसानों को यंत्र खरीदने के लिए ऋण की व्यवस्था करना आदि हैं ।किसानों के प्रशिक्षण के लिए किंग एडवर्ड एग्रीकल्चरल इंस्टीटूट की स्थापना भी उन्होंने की । आधार भूत संरचना के विकास में भी शाहू जी का अप्रतिम योगदान है जिसके तहत शाहू जी ने 1907 में राधा नगरी डैम की शुरुआत की थी जो 1935 में बनकर तैयार हुआ ।शाहू जी ने हिंदू संहिता का निर्माण करवाया जो बाद में हिन्दू कोड बिल का आधार बना ।
डॉ अम्बेडकर के साथ भी शाहू जी का काफ़ी संपर्क रहा। डॉ अम्बेडकर के अख़बार मूकनायक के प्रकाशन में साहू जी ने आर्थिक सहायता प्रदान करते रहे ।जब किन्हीं कारण वश डॉ अम्बेडकर को बड़ोदा राज्य द्वारा दी जाने वाली स्कॉलरशिप बंद हो गयी और वे वापस भारत आ गए तो साहू जी महाराज ने उनको आर्थिक सहायता देकर पुनः पढ़ाई के लिए वापस विलायत भेजा ।शाहू जी को अंबेडकर के रूप में एक बहुजन उद्धारक दिख चुका था ।
उनके कार्यों को देखते हुए कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने आनरेरी डॉक्टरेट ऑफ लॉ की डिग्री भी दी ।उनके योगदान को देखते हुए कानपुर कुर्मी समाज ने उनको राजऋषि के टाइटल से सम्मानित किया था।
शाहू जी का जन्म कोल्हापुर जिले के कगल गाँव में घटगे परिवार में हुआ था ।इनके बचपन का नाम यशवंत राव था ।इनके माता पिता का नाम राधा बाई और जय सिंह राव था ।जय सिंह राव गाँव के मुखिया थे ।जब यशवंत राव 3 साल के थे तभी उनकी माँ की मृत्यु हो गयी थी।जब वे 10 वर्ष के थे तभी कोल्हापुर के राजा शिवा जी चतुर्थ की विधवा रानी आनन्दी बाई ने उन्हें गोद ले लिया था ।उनकी शिक्षा राजकुमार कॉलेज राजकोट में हुई और प्रशासनिक कार्यों की शिक्षा उन्होंने सर स्टुअर्ट फ्रेजर से ली जो आई सी एस थे । उनकी शादी लक्ष्मी बाई खंविकर से हुई और उन्हें दो बेटे और दो बेटियां थीं ।
छत्रपति शाहू जी 5 फुट 9 इंच लंबे थे ।कुश्ती उनका पसंदीदा खेल था जिसे उन्होंने अपने शासन काल के दौरान संरक्षण दिया ।
छत्रपति शाहू जी राजा थे अगर चाहते तो आराम से ऐश्वर्यमयी ज़िन्दगी बिता सकते थे ।लेकिन उन्होंने परपीड़ा को महसूस किया और पीड़ा को ख़ुद की पीड़ा समझ कर जनता के दुःख दर्द को मिटाने का ऐतिहासिक प्रयास किया । शोषित तो ऐसे कई मिलेंगे जो अपनी और अपने समाज की पीड़ा को कम करने के लिए प्रयास करते हैं लेकिन राजा केवल छत्रपति शाहू जी महाराज ही हैं जिन्होंने ताज़िन्दगी दबे पिछड़े वर्गों की ज़िंदगी को सुधारने में स्वयं भी अपमान झेला ।ऐसे यशस्वी राजा को हमारा सादर नमन ।