पंकज पटेल की कविताएँ

गृह जनपद–संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश
शिक्षा- बी टेक
पंकज पटेल प्रयाग नाम से रचनात्मक लेखन करते है। समसमायिक विषयों, प्रेम तथा प्रकृति पर कविता लिखने में रूचि रखते है।

टिप्पणी ;पंकज पटेल युवा कवि हैं ।देश के प्रतिष्ठित कॉलेज से बी टेक करने के बाद एक बड़ी कंपनी में कार्यरत हैं। इनकी कविताओं में एक तरह का सेल्फ डायलॉग देखने को मिलता है ।ऐसा लगता है कि कविता इनके लिए स्वयं से संवाद का माध्यम है । वैसे कविता लिखना ख़ुद को खोजने जैसा ही होता है जिसमें रचनाकार हर शब्द के साथ “सेल्फ को डिस्कवर “करता है और अक्सर सेल्फ़ डिस्कवरी की यात्रा अंतर्यात्रा और बहिर्यात्रा दोनों हो जाती है । तभी तो रचनाकार पहले अपने से बात करता है और फिर अचानक सबकी पीड़ा व्यक्त करने लगता है और व्यष्टि से समष्टि की तरफ़ उन्मुख होना ही तो रचनाधर्मिता होती है। तभी रचनाकार को कई सारे क्यों,कैसे ,कहाँ जैसे शब्दों के उत्तर प्राप्त होते हैं ।युवा कवि पंकज भी कई सारे प्रश्नों के उत्तर अपनी रचनाओं में खोजते हुए मिल जाते हैं ।

【कर्मचारी हूँ 】

कर्मचारी हूँ
रोज नौकरी करने जाता हूँ |
सुबह आशाओं की पुड़िया जेब में डाल,
किसी की पढ़ाई बीमारी शादी कर्ज जैसे फ़र्ज़ पूरा करने जाता हूँ ||
कर्मचारी हूँ ,
आठ घंटे मेहनत करने जाता हूँ ||
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साइकिल मोटरसाइकिल मेट्रो कार ,
तो कभी ग्यारह नंबर को अपना वाहन बनाता हूँ |
कर्मचारी हूँ ,
घर पे रोज शाम को वापस आने का वादा कर के जाता हूँ ||
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पेन फाइल लैपटॉप हेलमेट ,
इस तरह की चीज़ों से रोज अपना शारीरिक श्रृंगार करता हूँ |
कर्मचारी हूँ ,
मैं रोज पैसे कमाने जाता हूँ ||
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तिरस्कार फटकार जातिवाद धर्मवाद ,
इस तरह के प्रकांड रोज सुनने और सहने जाता हूँ |
कर्मचारी हूँ ,
मैं तो बस केवल अपने काम से जाना जाऊँ बस ये चाहता हूँ ||
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भ्रष्टाचार शिष्टाचार व्यभिचार ,
इन सब से लबरेज हो के भी कमल बन के तैरता रहता हूँ |
कर्मचारी हूँ ,
मैं तो बस केवल कर्म का खाता हूँ ||
कर्मचारी हूँ

【जरूरी है】
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क्यों आए हो,
क्या करना है,
क्या कर सकते हो,
कितनी क्षमता है,
क्या खुद को पहचानते भी हो?
अपने नाम का अर्थ सिद्घ करने लायक भी हो,
इसलिए अपने बारे में जानना जरूरी है।
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क्या कभी हारे हो,
या कुछ खोया है,
क्या हासिल किया है,
या सब कुछ बस सही लगता है?
क्या खुद को कभी आजमाते भी हो,
अपने साहस को परख पाए भी हो,
इसलिए एक बार हारना भी जरूरी है।
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क्या पीछे पीछे चलते हो,
या कोई आगे जाने देता नहीं है
क्या सबको चलाना चाहते हो,
या रास्ता पता नहीं है,
क्या अकेले चलने से डर लगता है?
अपने को कभी आगे बढ़ा पाए भी हो,
इसलिए खुद के लिए लड़ना जरूरी है।
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क्या कभी हँसते हो,
या दूसरे को हँसाना आता है,
खुशी क्या है जानते हो,
या बस जीए जा रहे हो?
क्या खुद को मुस्कुराते हुए कभी देखा है,
अपने को कभी खुश कर पाए भी हो,
इसलिए रोज खुद को सराहना जरूरी है।

【कलयुग का रावण कोरोना 】

हर तरफ फैली शांति है
फिर भी सबका मन अशांत है
सब कुछ वापस आने लगा है
पर सब पहले जैसा नहीं रहा है
सबको डर है किसी के साथ चलने में
उठने बैठने साथ मुस्कुराने में
क्या है ये जो कभी दिखता है
कभी रह के भी गायब सा रहता है
मारे न मरता भगाये न भागता
अपनी शक्ति नित्य है बढ़ाता
इसको तो आता है हवा में भी चलना
ये है कलयुग का रावण कोरोना
लाखों लोगों का मिटाया इसने नाम
कई करोड़ों का छीना इसने काम
हज़ारों मीलो तक इसने गरीबो को पैदल चलाया
घर के बजाये फिर दूसरे लोक का दर्शन भी कराया
जाने अब भी ले रहा है
चिंता और बढ़ा रहा है
आज इससे हर तबका त्रस्त है
और इस की चल अब भी मस्त है
देखना है कब तक कोरोना अपना उत्पात मचाएगा
और किस रूप में इस रावण को मारने राम आएगा

【अमर प्रेम 】
सीरत और सूरत दोनों की लालसा नाकाबिल है,
कभी ढलते सूरज की लाली का श्रृंगार तो देखो ।
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कमर पे हाथ रख के इधर उधर डोलना तो बचपना है,
कभी किसी सारस के जोड़े को ठुमके लगाते हुए तो देखो।
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किसी को को गले लगाना में क्या ख़ाक मज़ा है,
कभी बारिश की तेज हवाओं को अपनी बाँहों में भर के देखो।

प्रेम की प्यास बुझ जाना तो महज एक छलावा है,
कभी सफ़ेद रेत पे तैरती लहरों में अपने पैर डुबा के तो देखो।
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किसी के प्यार में डूब के अपनी पहचान खो देना तो छोटी बात है
कभी समंदर के मुहाने पे नदी को अपनी पहचान बनाते तो देखो।

【माँ】

जब पहली बार मेरे मुँह से आवाज़ आई
तब आँखों में आँसू लिए मुस्कुरायी
…..मेरी माँ ।

जब भूख क मारे हम चिल्लाये
आँखे लाल कर मुह से लार गिराये
सब काम छोड़ तब भूख मिटाये
…..मेरी माँ ।

मेरे नन्हे चेहरे पर जब धुप आये
धूल बारिश और धुआं सताए
तब प्यार से अपने आँचल से ढक मुझे बचाये
…..मेरी माँ ।

जब कोशिश की चलने की
उसके गोदी से उतर रेंगने की
तब ऊँगली पकड़ के राह चलाये
…..मेरी माँ ।

मेरे हर सपने को अपना बना के
मेरी हर मुश्किल आसान बनाये
जीवन क हर मोड़ पर सही राह दिखाए
…..मेरी माँ ।

तेरे प्यार से बड़ा कोई प्यार नहीं
ना रिश्ता कोई ना ऐसी ममता कहीं
हर जनम में बस तुझे ही पाऊं
…..मेरी माँ

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