मेरे शिक्षक

 मेरे शिक्षक

तेज प्रताप नारायण ,समकालीन कविता में हस्तक्षेप रखने वाले रचनाकार हैं जिनकी रचनाओं में इंसान और इंसानियत के साथ समूची प्रकृति को बचाने की जद्दोजहद दिखाई पड़ती हैं ।उनकी चिंता हाशिए के लोग हैं । वे समाज मे उनका खोया हुआ स्थान दिलाना चाहते हैं। उनकी कविता संघर्ष की कविता है,प्रकृति की कविता है । शिक्षक दिवस पर प्रकृति के अंग उपांगों से सीखती -सिखाती उनकी यह कविता पढ़िए ।

मैंने सीखा है
निःशब्द हवाओं से
चुप चाप बहते रहना
जीवन को साँसे देते रहना

मैंने सीखा है
काली घटाओं से
बिना गरजे हुए
बरसते जाना
प्यासों की प्यास बुझाना

मैंने सीखा है
सूरज की किरणों से
जलते रहना
रौशनी देते रहना

मैंने सीखा है
किसानों से
हल चलाना
पसीना बहाना
पूरे ज़माने को खिलाना

मैंने सीखा है
फलों से लदे पेड़ों से
झुके रहना
फल और छाया देते रहना

मैंने सीखा है
नदियों से बहते रहना
ज़िंदगी में आगे बढ़ते रहना
ज़िंदगियों की प्यास बुझाते रहना
सभ्यताओं को बसाते रहना

मैंने सीखा है
पहाड़ो से
ऊंचाई पर स्थित रहना
फिर भी स्थिर रहना

मैंने सीखा है
चीटियों से
गिरते रहना
फिर भी चढ़ते रहना
बार बार प्रयास करते रहना

मैंने सीखा है
दीवालों से
नदी नालों से
हरी दूब से
बाँधने वाले सूत से
प्रकृति के कण कण से
जल से
थल से
नभ् से
प्रकृति का अंश अंश
कुछ न कुछ सिखाता है
जीने की राह दिखाता है ।

तेज

1 Comment

  • तेज सर को सुनना और पढ़ना दोनों ही बचपन मे जैसे और जानने का कौतूहल रहता है और खत्म नही होता था वैसा ही आज उनको सुनने या पढ़ने के बाद भी कौतूहल रहता है कि अब क्या रचना आएगी।
    तेज सर प्रकति और इंसानियत के प्रति काफी संवेदनशील है और यही दोनों बातें उनको सो कॉल्ड लेखक या कवि से अलग बनाती है।
    कोई भी प्रकृति और मानवता वादी व्यक्ति उनको पढ़ के उनका मुरीद हो जाता है ,
    मैंने कभी पिछले 10 सालों से पढ़ने कि रुचि या समय का बहाना बना के खत्म ही कर किया था। लेकिन तेज सर की रचनाएं पढ़ी उनसे मिला तो पढ़ने के लिए रुचि और समय दोनों आ गई।
    बस सर ऐसे की लिखते रहे और हम जैसे पौढ़ावस्था वाले लोगो मे पढ़ने की रुचि जगाते रहे ,इससे अभी भी बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। और मानवता और प्रकति को देखने का नज़रिया ही बदल गया है।
    संदीप उत्तम
    फरीदाबाद।

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