मैं गांव वाला हूँ

दीपक भारद्वाज ‘वांगडु’
जुबां पे मिठास
और मासूम ख्यालात
थोड़ा सा अल्हड़
मगर प्यार भरा जज्बात
सबसे प्यारा नाता
और लगाव वाला हूँ
हां मित्र, मैं गांव वाला हूँ
रिश्तों में गजब का
एहसास होता है
छोटे से छोटा परब
जहां खास होता है
बचकानी मस्ती लिए
सब होते हैं मगन
पर एक नेक दिल
हर किसी के पास होता है
हां ऐसे ही अपनत्व का
भाव वाला हूँ
हां मित्र, मैं गांव वाला हूँ
बेशक न धन का
भंडार गांव में
फिर भी है बेशुमार
प्यार गांव में
बांटे हैं आपस में
हर गम या खुशी
ऐसा ही होता है
संस्कार गांव में
हां ऐसे ही मोहब्बत की
छांव वाला हूँ
हां मित्र, मैं गांव वाला हूँ
खुशियों में मिलकर
सदा साथ में हंसते हैं
जब कोई तकलीफ हो
बेझिझक वे कहते हैं
हां कभी झगड़ भी लेते
कुछ आपसी मनमुटाव में
पर इकदूजे के फ़िक्र लिए
जहां सब रहते हैं
हां ऐसे ही अंतर्मन का
जुड़ाव वाला हूँ
हां मित्र, मैं गांव वाला हूँ।