रचना चौधरी का लेख: कोरोना काल और अवसाद

रचना चौधरी कवयित्री और कहानीकार हैं ।

कोरोना से बचना एक हद तक संभव है शायद। किंतु इस कोरोना काल में अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरी बीमारी दबे पाँव पसर रही है , जिसका नाम है अवसाद! जिसके परिणामस्वरूप
आत्महत्या या सामूहिक आत्मदाह जैसी घटनाएं घटित हो रही हैं। और परिस्थितियों को देखते हुए ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ऐसी घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ेंगी।
यदि आप भी किसी प्रकार का अवसाद महसूस कर रहे हैं चाहे वो आर्थिक तंगी की वजह से हो या किसी भी अन्य वजह से और अपने या अपनों के अवसाद को तमाम यत्न करके भी मैनेज नहीं कर पा रहे हैं तो कृपया करके एक बार अपने किसी भी करीबी से बात कीजिये। वो आपके परिवार का करीबी रिश्तेदार भी हो सकता है और आपका कोई खास दोस्त भी।

         सच कहती हूँ! मुश्किलों में अपनी जगह से देखने पर दूर- दूर तक बस अंधेरा ही दिखता है। मगर यकीन कीजिये.... रफ्ता - रफ्ता ही कदम बढ़ाते रहेंगे, या फिर कुछ वक़्त ठहर जायेंगे तो उम्मीद की नन्ही किरन ज़रूर नज़र आयेगी। अक्सर अंधेरा कितना भी गहरा हो लेकिन रौशनी का एक टुकडा भी वहीं कहीं मौज़ूद होता है, बस आँखें आँसुओं के धुंधलेपन में कुछ देख नहीं पातीं। 

   आत्महत्या किसी किसी मामले में त्वरित प्रक्रिया होती है किंतु जब कोई पूरे परिवार को खत्म करके आत्महत्या करने की सोचता है तो यह सब कुछ बकायदा एक प्लानिंग के तहत होता है। कभी कभी पूरा परिवार भी इस तैयारी में इन्वोल्व होता है और कभी - कभी इन सब से अनभिज्ञ भी। जो भी हो लेकिन ये प्रक्रिया थोड़ा वक़्त लेती है। ये वक़्त एकाध दिन से लेकर के हफ़्तों, महीनों और कई बार सालों तक का भी हो सकता है। ज़रूरी होता है इस पूरी तैयारी की चेन को ब्रेक करना। यदि किसी भी तरह इस पूरी तैयारी के बीच में किसी भी शुभचिंतक का हस्तक्षेप हो सके तो शायद ऐसी अनहोनियाँ टल जाएँ। 

“हर बुरे से बुरा दौर भी गुज़र जाता है,
बस उसे थोड़ा वक़्त दीजिये। “

“वो भी एक दौर था, ये भी एक दौर है। “

“अगर खुशियों का दौर गुज़र गया तो
ग़मों का भी गुज़र जायेगा। “

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