रचना चौधरी का लेख: स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता के मायने
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समाज में स्त्रियों की सामाजिक स्वतंत्रता तथा आत्मनिर्भरता की स्थिति लाने में उनकी आर्थिक स्वतंत्रता का बहुत बड़ा योगदान है | फाइनेंसियल फ्रीडम अपने आप में एक वृहद् विषय है | और उसका सम्बन्ध व्यक्ति की फाइनेंसियल कंडीशन की सुदृढ़ता की एक स्थिति से है , किन्तु यहाँ पर स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता का तात्पर्य उनकी फाइनेंसियल इंडेपेंडेन्सी से है |
एक ऐसा युग , जब धन ही साधन है और धन ही साध्य | ऐसे में जब स्त्री आर्थिक रूप से पराश्रित होती है तो स्वतः ही उसकी स्थिति थोड़ा निम्न हो जाती है | यदि वह आर्थिक रूप से पराश्रित होती है तो कुछ बिंदु ऐसे हैं जिन्हे रेखांकित करना आवश्यक हो जाता है…
1- कहीं न कहीं उसमे अनिर्णय की स्थिति बनी रहती हैं |
2- घर की धुरी होने के बावजूद , वो पुरुष के समान स्थिति में नहीं मानी जाती |
3- पति के द्वारा प्रताड़ित होने पर भी प्रायः, जीवन यापन हेतु अपनी अक्षमता सोचकर वो आजीवन प्रताड़ना झेलती रहती है |
4- उसे हमेशा ही एक सहारे की तलाश रहती है, भाई, पिता या पति के रूप में |
5- उसका जीवन समझौतों के इर्द गिर्द घूमता रहता है।
6- आर्थिक निर्भरता , उसमे कभी वो आत्मविश्वास आने ही नहीं देती कि वो अकेले अपने दम खम पर अपने जीवन के महत्वपूर्ण फैसले ले सके | और अकेले ही आगे बढ़ने का हौंसला रख सके |
7- समाज में हमेशा ही उसकी उपस्थिति को द्वितीयक स्थान पर ही रखा जाता है, यद्यपि वो बराबर की भागेदारी रखती है |
अब मज़े की बात ये है कि यदि स्त्री आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाए तो उपरोक्त कोई भी समस्या समाप्त नहीं होगी | क्योंकि अपने चारो तरफ आपको भी ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे जब लड़की फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट होते हुए भी सामाजिक विसंगतियों से नहीं लड़ी या नहीं लड़ सकी | लेकिन ये बात गौरतलब है कि तब वो अपनी लड़ाई लड़ने में सबल होती है, अपने फैसले स्वयं लेने में अधिक स्वतंत्र होती है किन्तु अपनी सुदृढ़ता को वो उसी समाज के लेंस से देख रही होती है जिसे आदत है उसे पराश्रित और लाचार देखने की |
दरअसल आर्थिक स्वतंत्रता सीधे सीधे किसी खुशहाली की गारेंटी नहीं है | वह बस सुदृढ़ता प्रदान करता है एक व्यक्तित्व को | और गौरतलब है कि एक सुदृढ़ व्यक्तित्व अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल करके, अपनी सामाजिक स्थिति को समझते हुए अपने लिए खड़ा रह सकता है |
आज जब अर्थव्यवस्था ही समाज का मुख्य स्तम्भ हो चला है , तो फिर स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता की आवश्यकता को समझा जा सकता है | क्योंकि ये आर्थिक स्वतंत्रता उसकी स्थिति को डायरेक्ट नही सुधारेगी किन्तु जब तक आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं आएगी ,तब तक उसकी सामाजिक प्रस्थिति में सुधार की सम्भावना भी अल्प रहेगी | क्योंकि शिक्षा उसे जागरूक बनाएगी, सुदृढ़ और सशक्त बनाएगी किन्तु जब तक परनिर्भरता, पराश्रितता होगी , वो इन सारी शक्तियों का प्रयोग चाहकर भी नहीं कर पाएगी |
– रचना