रेणु वर्मा की कविताएँ
गृह जनपद : जोधपुर राजस्थान
शिक्षा : स्नातकोत्तर (अंग्रेज़ी) बी एड
रेणु वर्मा के नाम से लेखन
कैफ़ीयत के नाम से एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित
रेख़्ता २०१८ में भागीदारी
कई पत्र पत्रिका में स्तंभ कविताएं ग़ज़ल प्रकाशन
लेखन पाक और फोटोग्राफी में रुचि
टिप्पणी :【रेणु वर्मा की कविताओं में प्रकृति की महत्ता और हाशिये के लोगों के प्रतिरोध (चाहे कमज़ोर तबके के लोग हों या स्त्री की आवाज़ ) के स्वर एक साथ दिखाई पड़ते हैं । मनुष्य कितनी भी प्रगति कर ले लेकिन प्रकृति अपने ढंग से मनुष्य को सबक सिखाती रहती है । जैसे प्रकृति स्वनिर्मित है वैसे autocleansing भी करने में सक्षम है । इनकी कविताओं में जो प्रतिरोध दिखाई पड़ता है वह किसी भी तरह की नारेबाज़ी से इतर है लेकिन कविताओं के प्रतिरोध का स्वर निश्चयात्मक और दृढ़ है ।सरल भाषा में सुंदर बिंबों से सजी कविताएँ निश्चय ही पढ़ने वालों पर बढ़िया प्रभाव छोड़ती हैं ।】
【मज़दूर】
यहाँ मज़दूर
सियासी पुलाव में
डाले गए वो
साबुत गरम
मसाले हैं
जिन्हें पुलाव
बनाते समय
सबसे पहले
डाला जाता है
और पुलाव
बनते ही
सबसे पहले
निकाल भी
दिया जाता है
सियासी पुलाव में
रईसी खुशबू
इनसे ही है ।
【दरवाज़ा 】
तुम जब भी मिले
तुमने कोशिश तो की
मुझे जीतने की
पर मुझ तक
कभी पहुँच ही नहीं पाए
मेरे दिल में आने के लिए
तुमने जबरन तोड़े
मेरे दिल के दरवाज़े
जबकि मैं थी
हल्की सी आहट से
खुलने वाला
दरवाज़ा ।
【हलक 】
प्यास
क्या है
इसका
एहसास
सिर्फ़
और सिर्फ़
हलक को
होता है
पानी
नहीं जानता
कि
उसकी तलब
किसी
प्यासे को
कितना बेसब्र
कर देती है
ठीक वैसे
जैसे तुम्हें
नही मालूम
कि तुम्हारा
इंतज़ार
जैसे
हलक में
अटकी
प्यास ।
【मिलन 】
फ़िज़ा में
एक अलग
महक थी
सौंधी सौंधी
गहरी साँसों
के साथ
भीतर तक
उतरती
मन मोहक
खुशबू
जैसे
क़ायनात की
कोई अधूरी
इच्छा हो
रही हो पूरी
जैसे चकोर
हो रहा हो तृप्त
स्वाति बूंद से
दूर रेगिस्तान में
बारिश हो रही थी
प्यास
पानी से
मिल रही थी ।
【सर्वोपरि 】
अंत में
दीवार में
उगे पीपल
को देख कर
लगा
कि जीत
हमेशा
प्रकृति की
होती है
इंसान ने
कॉन्क्रीट के
मजबूत
किले
बनाये
लेकिन
कोमल सा
एक अंकुर
उसको
चीर कर
उग आया
ये बताया
कुदरत ने
कि वो
ही बस
सर्वोपरि है ।