वरिष्ठ लेखिका नीलम सक्सेना से बात चीत

परिवर्तन :कुछ अपने बारे में बताइए ?

नीलम सक्सेना : मैं एक इंजीनियर हैं व पुणे में अपर मंडल रेल प्रबंधक के पद पर कार्यरत हूँ| कवितायेँ एवं कहानियां लिखना मेरा शौक है| मेरी १५०० से अधिक रचनाएं विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं| मेरे चार उपन्यास, एक उपन्यासिका, छह कहानी संग्रह, बत्तीस काव्य संग्रह व तेरह बच्चों की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं| मुझे विभिन्न पुरस्कारों से सुशोभित किया गया है , जैसे अमेरिकन एम्बेसी द्वारा आयोजित काव्य प्रतियोगिता में गुलज़ार जी द्वारा पुरस्कार, रबिन्द्रनाथ टैगोर अंतर्राष्ट्रीय काव्य पुरस्कार २०१४, रेल मंत्रालय द्वारा प्रेमचंद पुरस्कार, चिल्ड्रेन ट्रस्ट द्वारा पुरस्कार, पोएट्री सोसाइटी ऑफ़ इंडिया द्वारा काव्य प्रतियोगिता २०१७ में द्वितीय पुरस्कार, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादेमी द्वारा सोहनलाल द्विवेदी पुरस्कार, ह्यूमैनिटी अन्तराष्ट्रीय वीमेन एचीवर अवार्ड २०१८, भारत निर्माण लिटरेरी अवार्ड पुरस्कार इत्यादि| मेरे द्वारा लिखे गीत ‘मेरे साजन सुन सुन’ को रेडियो सिटी द्वारा फ्रीडम पुरस्कार इत्यादि|

मेरे कार्य को सराहते हुए एक वर्ष में सबसे अधिक पुस्तक प्रकाशन हेतु लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड द्वारा इन्हें मान्यता मिली है| मुझे फ़ोर्ब्स मैगज़ीन द्वारा २०१४ के देश के अठहत्तर प्रख्यात लेखकों में नामित किया गया है|

परिवर्तन: आपके अनुसार वर्तमान में साहित्य की स्थिति क्या है ?विशेषकर हिंदी साहित्य की ।साहित्य में और किन किन बातों का समावेश होना चाहिए ?

नीलम सक्सेना :यह प्रश्न पढ़कर रस्किन बांड द्वारा कही हुई एक लाइन याद आ रही है, “भारत में आजकल पढने वालों से अधिक, लिखने वाले हो गए हैं!” सेल्फ-पब्लिशिंग में अक्सर किसी भी तरह का साहित्य छप जा रहा है| मल्टी-नेशनल पब्लिशिंग हाउस भी एक ही तरह के लेखकों को आगे करते हैं| कुल मिलकर, लिखना एक मुश्किल कार्य हो गया है|
हिंदी साहित्य तो बहुत ज़्यादा मार खा रहा है| आजकल अंग्रेजी साहित्य को पढने की एक होड़ सी लगी हुई है| मैं ख़ुद अंग्रेजी और हिंदी – दोनों भाषा में लिखती हूँ, पर अंग्रेजी साहित्य को जहां जल्द ही जगह मिल जाती है और रॉयल्टी इत्यादि समय पर मिल जाती है, हिंदी पब्लिशिंग के बहुत कम प्रकाशन समूह में यह अनुशासन है|
साहित्य में सबसे पहले तो भाषा में सरलता होनी चाहिए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक यह पहुँच सके| उसके बाद यह इस तरह लिखा जाना चाहिए कि पाठक की रूचि बनी रहे| इसके अलावा यह बहुत अधिक शिक्षा देने वाला न रहकर, रोचक रहे यह ख्याल रखना चाहिए| और फिर यह समय के अनुसार होना चाहिए|

परिवर्तन :सोशल मीडिया के आने से साहित्य में क्या आमूलचूल परिवर्तन हो रहा है ?

नीलम सक्सेना : जी हाँ, सोशल मीडिया ने साहित्य के क्षेत्र में बहुत बड़ा परिवर्तन लाया है| जिन लेखकों और कवियों को अच्छा लिखने के बावजूद अच्छे प्रकाशन समूह नहीं मिल पाते, उनके लिए तो यह अद्वितीय
मंच है|

परिवर्तन: आपके मनपसंद लेखक कौन हैं और क्यों हैं?

नीलम सक्सेना :मैंने हिंदी और अंग्रेजी – दोनों भाषाओं को काफ़ी पढ़ा है| अंग्रेजी में मुझे एरिक सेगल, पर्ल बक, जैसे लेखक पसंद हैं| हिंदी में मालती जोशी, प्रेमचंद इत्यादि पसंद हैं| कविता के क्षेत्र में गुलज़ार साहब (जिनसे एक पुरस्कार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ), जावेद अख्तर, पियूष मिश्रा इत्यादि पसंद हैं|

परिवर्तन: क्या स्त्री विमर्श पर साहित्य सिर्फ़ स्त्रियों को लिखना चाहिए ? कुछ लोगों का मानना है कि स्वानुभूति और सहानुभति में काफी अंतर होता है और पुरूष लिखेगा तो सहानुभूति से लिखेगा।

नीलम सक्सेना: मेरा मत उसमें उलटा है| मेरे अनुसार स्त्री विमर्श पर पुरषों को ज़्यादा लिखना चाहिए, क्योंकि यदि स्त्री लिखती है, तो उसकी कहानी सोचकर कोई ध्यान नहीं देता है – जबकि यही मुद्दा यदि पुरुष उठाता है तो उसपर लोगों का ध्यान अधिक जाता है| परन्तु इस विषय पर ऐसे ही पुरुष लिखें जिनकी कथनी और कहनी में फरक न हो – वरना झूठ समझ में आ जाता है, क्योंकि पाठक बहुत चतुर होता है|
जब तक ज़्यादा से ज़्यादा पुरुष इस ओर अपना ध्यान आकर्षित नहीं करते, मेरे जैसी स्त्रियाँ इसपर लिखती ही रहती हैं| मैंने कई कहानी संकलन, कवितायें और उपन्यास महिला विशेष पर लिखी हैं|

परिवर्तन: आजकल अलग -अलग क्षेत्रों जैसे इंजीनियरिंग, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों के लोग भी साहित्य की भिन्न भिन्न विधाओं में लिख रहे हैं ।
इससे साहित्य पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा ?

नीलम सक्सेना : यह बहुत ही अच्छा कदम है| जितने प्रकार के विचार सामने आयेंगे, उतनी ही समाज की प्रगति होगी| मैं चाहूँगी कि हर क्षेत्र के लोग लिखें।

परिवर्तन: आप लेखन के क्ष्रेत्र में नए लोगों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी ।

नीलम सक्सेना : मैं यह हर साक्षात्कार में दोहराती हूँ कि अच्छा लेखक बनने के लिए अच्छा पढ़ना बहुत ज़रूरी होता है| सबसे पहले कुछ साल, लिखने की सोचे बिना, सिर्फ और सिर्फ अच्छे लेखकों की कृतियों को पढ़ना चाहिए| उसके पश्चात ही लिखने की ओर बढना चाहिए|
दूसरी महत्वपूर्ण चीज़ यह है कि लिखने की शैली की ओर ख़ास ध्यान देना चाहिए| और तीसरी चीज़ यह है, कि आपके पास लिखने के लिए वाकई कुछ होना चाहिए – अपने अनुभव या फिर कल्पना शक्ति|

परिवर्तन :आप साहित्यिक जीवन,व्यक्तिगत जीवन और सरकारी नौकरी में संतुलन कैसे बिठाती हैं ?

नीलम सक्सेना : महिलायें वैसे भी “मल्टी टास्किंग” करना बचपन से ही सीख जाती हैं| एक पल घर का काम कर रही होती हैं, तो दूसरी ओर पढ़ रही होती हैं| मुझे भी यह संतुलन बनाना बचपन से ही आ गया था| फिर मेरी प्राथमिकता एकदम साफ़ है – पहले नौकरी और घर और फिर लिखना|
मैंने पिछले बाईस साल से टेलीविज़न नहीं देखा है| इससे मुझे अच्छा-ख़ासा वक़्त मिल जाता है|

परिवर्तन: परिवर्तन के बारे में आपके क्या विचार हैं ?

नीलम सक्सेना : परिवर्तन लेखन के क्षेत्र में बहुत ही अच्छा कार्य कर रहा है| वरिष्ठ कवि और लेखकों को जहां नम्रता पूर्वक उचित स्थान देता है, वहीँ, नए लेखक/कवियों को भी जगह दे रहा है| मैं परिवर्तन को बहुत बधाई देना चाहती हूँ, और चाहती हूँ कि वो आगे बढ़ता रहे| मुझसे जब भी, जो भी हो सकेगा, मैं उनका साथ देने को तैयार हूँ|

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