विमल कुमार ‘भारती ‘ की कविताएँ
विमल कुमार ‘भारती’
ख्यातिलब्ध शिक्षक, प्रेरक एवं कवि
अमरपुरा, पटना, बिहार
[ कविता और प्यार ]
कविता लिखी नहीं जाती
खुद-ब-खुद लिख जाती है
वैसे ही जैसे
प्यार किया नहीं जाता
खुद हो जाता है
कविता में
शब्दों को जोड़ना
अंगों को मिलाने जैसा है
शब्दों के बीच यौन संबंध
स्थापित करने जैसा है
इसमें काव्य कहाँ है
प्रेम कहाँ है
प्यार और काव्य
दोनों का मूल
सहज भाव होता है
जो अनुकूल परिस्थितियों में
दिल से, आत्मा से
अंकुरित होता है
तुकबंदी न कविता होती है
न संभोग प्रेम होता है
कुछ लिखने की वासना
तुकबंदी गढ़ देती है
और कामेच्छा की भावना
संभोग को प्रेरित करती है
कविता लिखी नहीं जाती
खुद-ब-खुद लिख जाती ह
[ संभोग प्रेम नहीं है ]
संभोग
प्रेम नहीं
एक क्षणिक
आशक्ति मात्र है
नट का नरपशु प्रतिदिन
कई मादा पशुओं से
संभोग करता है
तो क्या वह उन सब से
प्रेम करता है ?
तवायफें नित
कई पुरुषों के साथ
संसर्ग करती हैं
तो क्या वे उन सबसे
प्रेम करती हैं ?
एक दम्पति
ताउम्र एक दूसरे की
वासना को तृप्त करते हैं
फिर भी उनके बीच नफरतें
अपनी जड़ें जमा लेती हैं
कई बार उनके बीच का अप्रेम
हत्या_आत्महत्या
के रूप में प्रकट होता है
पेट भर जाने के बाद
रसोइए के प्रति
और संभोग के उपरांत
सहगामी के प्रति
तथाकथित प्रेम
स्वतः समाप्त जाता है
संभोग एक
मानसिक वृत्ति है, जरूरत है
वैसे ही जैसे
भोजन और पानी
शारीरिक वृत्ति है, जरूरत है
जबकि प्रेम सार्वभौमिक है
[ महाकवि ]
कबीर एवं रैदास बनने से
कोई महाकवि थोड़े बनता है
महाकवि बनने हेतु
कालिदास ; तुलसीदास
बनना पड़ता है
या यों कहें
दरबारी बनना पड़ता है
राज एवं राजदरबार
के झूठ को
महिमामंडित करना पड़ता है
आततायी, अन्यायी को
आदर्श पुरूष
एवं कायर, क्रूर को
कुलश्रेष्ठ
लिखना पड़ता है.
[ चारण ]
कवि कभी
दरबारी नहीं होता
दरबारी कभी
कवि नहीं होता
दरबारी कवि
काव्य नहीं रचता है
वह राज की रुचि रचता है
उसकी कविता का परम भाव
राजा का महिमामंडन होता है
उसकी कविताएँ
वर्ण, मात्रा, रस, अलंकार
से तो अभिप्रमाणित रहती हैं
पर, उसमें काव्य-कथ्य का
सर्वदा अभाव रहता है
उसकी कविताएँ
कविता नहीं
स्तुतिगान होता है
दरबारी कवि
कवि नहीं
चारण होता है
[ पसंद ]
मैं गरीब हूँ
पर,
मुझे अमीरी पसंद है
मेहनत करके मैं
कई लोगों को
अमीर बना चुका हूँ
तू अमीर है
पर,
तुम्हे गरीबी पसंद है
साजिश करके तू
कई लोगों को
गरीब बना चुके हो ।