विवाह गीत

प्रसिद्ध कवयित्री डॉ अनुराधा ओस के आने वाले संकलन ‘ मड़वा के छाँव में’ से इन विवाह गीतों को लिया गया है ,साथ में इनका अर्थ भी दिया गया है ।इन लोकगीतों की भाषा अपनी आंचलिकता में अवधी और भोजपुरी दोनों को समाहित किए हुए है।

1]

द सोवउँ -सोवउँ रे दूल्हे
तोरी अँखिया, ललित दूल्हे नींद सोवउँ
कइसे के नींद सोवउँ-सोवउँ मोरे बाबा
कवन देई ओस भिजयी मोर बाबा
कवन राम ओस भिजयी
तोहरे माई के तम्बू तनायी देब
तोहरे बाबा के छत्र छवाई देब।

अर्थ–
हे दूल्हे ! तुम्हारी आँखे उनींदी है, तुम सो जाओ,कैसे सोऊँ बाबा ,कवन देह ओस में भीग रही है, कवन राम ओस में भीग रहें हैं, बाबा कहतें हैं कि,तोहरे माई के तम्बू तनवाई देंगे, तोहरे बाबा के छत्र छवां देंगे,तुम सो जाओ।

2]
अनयी के देश बाबा कनई  छाये हरियर बाँस
ओहि चढ़ि चितवले बाबा हो कवन राम
कस दल आवई बरियात
हथिया त आवला इनतिन-गिनातिन
घोड़वा से पूर् पचास
मोर बरिआतिआ के अधिक न सूझय
लंका गरद उधीराय
एतना बरात देखि हहरे कवन राम
जाई हमे बजरी केवाड़
केह मोरे बेटी के सजना सम्हारिहै
केन्ह मोर रिन्हई भात
परदा ओलरी ओलट होइके बोलय कवन देई
बाबा अरज हमार
जिनि बाबा हहरि जिनि बाबा थहरे
जिनि हरउ बजरी केवाड़ी
भइया कवन राम सजना सम्हरिहयँ
भौजी मोर रिन्हली भात
सात कुटुम्ब मिली दायज देइहीं
तुंहुँ बाबा कन्या के दान ॥

अर्थ–
सखी कहती है कि बाबा हरियर बाँस की कनयी से माड़ो छवाकर ,बारात की तैयारियां करतें हैं, बारात की आहट देखतें कि, अनगिनत हाथी पचास  घोड़े बहुत सारी संख्या में देख ,घबरा जाते हैं और कहतें हैं कि,कौन दूल्हे को सम्भालेगा और कौन बारात की देख-रेख करेगा,कौन भोजन की व्यवस्था करेगा,इतने पर बेटी पर्दा हटाकर कहती हैं कि बाबा आप इतना घबराइए मत,मेरे भईया दूल्हे को सँभालेंगे,और भौजी भोजन -भात की व्यवस्था, सभी कुटुम्बी मिलकर दहेज की व्यवस्था करेंगे, और बाबा आप कन्यादान।

3]
धम गरजे से दूल्हा उतर पड़े
मालिनी बिटिया मगन भई
मोरे मौरा के गाहक आई गए
पंडित बिटिया मगन भई
मोरे पोथिया के गाहक आयी गए
दरजी बिटीअवा मगन भई
मोरे जमवा के गाहक आयी गए
मनिहारिन बिटीअवा मगन भई
मोरे सिन्धुरा के गाहक आयी गए ॥

अर्थ–
सखी कहती है कि पूरी धमक के साथ दूल्हा द्वार पर उतर रहे हैं, यह देखकर मालिन की बेटी बहुत प्रसन्न  होती है कि उसके बनाये मौर का कोई ग्राहक आ गया,यह देखकर पण्डित की बेटी प्रसन्न होती है कि मेरे पोथी का ग्राहक कोई आ गया,यह देखकर दरज़ी की बेटी प्रसन्न होती है कि मेरे जामा का कोई ग्राहक आ गया,यह देखकर मनिहारिन की बेटी बहुत प्रसन्न होती है कि मेरे सिन्धुर का कोई ग्राहक आ गया ॥

2 Comments

  • बाह, बहुत सुन्नर, मनभावन गीत! रउआ के खूब बधाई आ शुभकामना अनुराधा जी! हिरदय जुड़ा गइल।

  • कुंदन सिद्धार्थ जी इस सुंदर टिप्पणी के लिए आभारी हूँ.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *