समाज का लोकतांत्रिक चरित्र,ऑस्ट्रेलिया और हम
रजनीश संतोष चर्चित ग़ज़लकार, कवि और लेखक हैं ।समसामयिक मुद्दों पर अपनी स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं ।
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लोकतंत्र नुमाइश और लफ़्फ़ाज़ी की चीज़ न होकर समाज के चरित्र का हिस्सा हो तब ही ऐसे नज़ारे सम्भव हैं.
लोकतंत्र न तो कोई व्यवस्था है और न नियम क़ानून. प्रधानमंत्री से लेकर व्यापारी, अधिकारी, किसान, मज़दूर आदि सभी नागरिकों द्वारा अपने जीवन व्यवहार में एक दूसरे की गरिमा का बग़ैर ढोंग के बराबर सम्मान करना लोकतंत्र है.
लोकतंत्र में ‘लोक’ प्रमुख तत्व है, तंत्र महत्वपूर्ण तो है मगर प्रमुख नहीं. लोकतांत्रिक सोच जब समाज में गहरे समाई होती है तब लोकतांत्रिक होने का ढोंग नहीं करना पड़ता.
यहाँ प्रधानमंत्री का लोकतांत्रिक व्यवहार बड़ी बात नहीं है. प्रधानमंत्री जैसे पद पर बैठने वाले किसी भी व्यक्ति का दिमाग़ खराब हो सकता है, उसके अंदर कहीं गहरे दबी सामंती इच्छाएँ बाहर आ सकती हैं. वह सत्ता के मद में चूर होकर ग़ैरलोकतांत्रिक हो सकता है. लेकिन यह सम्भावना हमेशा सिर्फ़ सम्भावना बनी रहे कभी हक़ीक़त न हो पाए इसके लिए समाज का चरित्र लोकतांत्रिक होना और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत रहना बहुत ज़रूरी है.
यहाँ उस शख़्स का प्रधानमंत्री को टोकना बड़ी घटना है. और उससे बड़ी घटना वह दबाव है जिसने प्रधानमंत्री को उस शख़्स की गरिमा और सम्मान बनाए रखने को प्रेरित किया.
बड़ी सहजता से एक शख़्स अपने घर से बाहर आता है और अपने लॉन में खड़े प्रधानमंत्री से घास पर से हटने का आग्रह करता है. प्रधानमंत्री न सिर्फ़ हटते हैं बल्कि खेद प्रदर्शित करते हैं और पत्रकारों को भी हटने को कहते हैं. वह शख़्स बताता है कि उसने अभी वहाँ बीज रोपे हैं. यह सिर्फ़ सतही लोकतंत्र नहीं है. असल में वह शख़्स यह भी कह रहा है कि उसे प्रधानमंत्री को हटाना अच्छा नहीं लग रहा लेकिन उसने नए बीज रोपे हैं इसलिए उन्हें हटना ही चाहिए. वह यह भी बता रहा है कि बीज और घास और पौधे प्रधानमंत्री पद के रौब से बड़े हैं . और प्रधानमंत्री यह बात स्वीकार करने के लिए मजबूर हैं.
यहाँ video में पीएम स्कॉट मॉरिसन एक शख्स के लॉन में खड़े होकर मीडिया से बातचीत कर रहे हैं.
वो शख्स उनसे कहता है, ‘क्या सभी लोग उस घास से हट सकते हैं. मैंने अभी इसमें बीज डाले हैं. घास खराब हो जाएगी. ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन ने ना सिर्फ उस शख्स की बात मानी, बल्कि पत्रकारों को भी वहां से हटने को कहा
इसके बाद ऑस्ट्रेलियाई पीएम बेहद ही विनम्र तरीक से उससे कहते हैं, ठीक है…क्यों नहीं. हम यहां से पीछे हट जाते हैं. ऑल गुड थैक्स.’ फिर मकान मालिक भी थैक्स कहता है.
ऐसे नज़ारों की कल्पना भी भारत में हम नहीं कर सकते. हमारे अंदर अव्वल तो लोकतांत्रिक चरित्र का घोर अभाव है ऊपर से हम ढोंगी भी बहुत हैं. मैं दावे से कहता हूँ कि इस video को देखने वाले 90% से ज़्यादा भारतीयों के दिमाग़ में सबसे पहले यह आएगा कि कहीं यह सब पब्लिसिटी स्टंट तो नहीं है ? लेकिन आप भारतीय PM से पब्लिसिटी स्टंट के तौर पर भी ऐसे व्यवहार की कल्पना नहीं कर सकते. क्योंकि सामंती चरित्र आपको ढोंग भी लोकतांत्रिक तरीक़े का नहीं करने देता.
आप खुद से सवाल पूछिए कि PM तो छोड़िए, अगर विधायक भी आपके लॉन में खड़ा हो तो आप ऐसे हटने को नहीं कह सकते. डर का बहाना मत बनाइए.. असल में आपके ख़याल में भी यह बात नहीं आएगी क्योंकि आप इस कृतज्ञता से इतना लबालब होंगे कि विधायक जी हमारे लॉन में पधारे. यह सामंती चरित्र है और जिस दिन हम इससे आगे बढ़ जाएँगे PM की भी हिम्मत नहीं होगी हमारी लॉन में घास के बीज रौंदने की.