सुभाष चन्द्र गुप्ता उर्फ़ मुद्रा राक्षस

पुण्य तिथि विशेष2 ,by Dr Rajendra Prasad Singh

शूद्रों के चित्रकार थे मुद्राराक्षस! एक चित्रकार था – बादलों का चित्रकार ! वह ताजिंदगी बादलों का चित्र बनाता रहा – काले, भूरे, मटमैले बादलों का। बादलों के चित्र कभी पूरे नहीं हुए। जिंदगी पूरी हो गई।

मुद्राराक्षस शूद्रों के चित्रकार थे। वे ताजिंदगी शूद्रों के चित्र बनाते रहे – बदहाल, फटेहाल, तंगोतबाह शूद्रों का। शूद्रों के चित्र कभी पूरे नहीं हुए। जिंदगी पूरी हो गई।

मुद्राराक्षस के लिए शूद्र वैसे ही थे, जैसे तुलसीदास के लिए राम। तुलसी ने रामकथा को न जाने कितने रूपों में, कितनी विधाओं में, कितने तरीकों से लिखा है! कभी कवित्त में, कभी सवैया में, कभी बरवै में और कभी दोहा – चौपाई में – अनेक।

मुद्राराक्षस ने भी शूद्रों की कथा को न जाने कितने रूपों में, कितनी विधाओं में, कितने तरीकों से लिखा है ! कभी नाटकों में, कभी उपन्यासों में, कभी संस्मरणों में, कभी कहानियों में – अनेक। कई – कई कोणों से शूद्रों के कई – कई चित्र बनाए हैं मुद्राराक्षस ने।

आप मुद्राराक्षस का उपन्यास ” नारकीय ” पढ़ लीजिए। लेखकीय यात्रा के अनुभव का दस्तावेज है ” नारकीय ” । यशपाल के घर सभी लेखकों को चाय मिलती है, शूद्र लेखक मुद्राराक्षस को नहीं। मुद्राराक्षस के ” कालातीत ” में भी असाधारण और सबसे अलग संस्मरण दर्ज हैं। कैसे कोई द्विज इतिहास में दाखिल होता है और कैसे किसी शूद्र को इतिहास में दाखिल होने से रोका जाता है?

आप मुद्राराक्षस की ” नई सदी की पहचान – दलित कहानियाँ ” पढ़ लीजिए। शूद्र – जीवन केंद्र में है। भूमिका में मुद्राराक्षस ने शूद्रों का जो संक्षिप्त इतिहास लिखा है, वह मनोमस्तिष्क को झकझोर देनेवाला है।

आप मुद्राराक्षस के अनेक निबंध पढ़ लीजिए, मिसाल के तौर पर शास्त्र – कुपाठ और स्त्री, अशोक के राष्ट्रीय चिन्हों पर सवाल, बौद्धों की अयोध्या का प्रश्न, ज्ञान – विज्ञान और सवर्ण, भारत और पेरियार, बुद्ध के पुनर्पाठ का समय आदि। ये सभी निबंध सबूत हैं कि मुद्राराक्षस शूद्राचार्य थे।

मुद्राराक्षस की एक पुस्तक है – ” धर्म – ग्रंथों का पुनर्पाठ “। वेदों से लेकर शंकराचार्य तक के ग्रंथों का तेज- तर्रार विवेचन – विश्लेषण, तर्काश्रित मुहावरे और तथ्यों के प्रति बेबाक दृष्टिकोण!

समझौतापरस्त नहीं थे मुद्राराक्षस। गिरिजाकुमार माथुर से भिड़ गए , दिनकर की उर्वशी की खाल उतार ली, भगवतीचरण शर्मा को जनसंघी कहा, प्रेमचंद को दलितविरोधी का तमगा दिया, लोहिया को फासिस्ट और अमृतलाल नागर को बेकार उपन्यासकार बताया – चौतरफा मोर्चा खोले थे मुद्राराक्षस।

सामाजिक क्षेत्र में जो काम फुले ने किया, राजनीतिक क्षेत्र में जो काम आंबेडकर ने किया, वही काम साहित्य के क्षेत्र में मुद्राराक्षस ने किया।

आज नमन शूद्राचार्य को!

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