हाकिम का मिज़ाज
देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज आई ई टी लखनऊ से बी टेक् और फिर उत्तर प्रदेश शासन से रिटायर्ड (वीआर एस) दिनेश कुमार सिंह ,लखनऊ से प्रकाशित ‘डे टू डे दैनिक’ के उपसंपादक हैं ।समाज के उपेक्षित वर्गों को यथा सम्भव सहायता भी देते हैं ।
हर आदमी का मिज़ाज समय और परिस्थितयों के अनुसार बदलता रहता है,पर हाकिम और बीबी का मिज़ाज समझना सबसे मुश्किल होता है । कौन कब किस बात पर भड़क जाए और कब खुश हो जाये, पता ही नही चलता?
बात 1990 की है ,मुलायम सिंह यादव जी पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे और मेरी भी नौकरी को अभी कुछ महीने ही गुज़रे थे । जैसे कि कहावत है नया मुल्ला ज्यादा प्याज़ खाता है ,वही हालात नई नई कांग्रेस मुक्त सरकार की और मेरी भी थी।पूरे प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारी ताश के पत्तो की तरह फेंटे जा रहे थे, सालों से मलाईदार पदों पर बैठे कांग्रेसी नेताओ की छत्रछाया में फल फूल रहे अफसरों को महत्वहीन पदों पर जाना पड़ रहा था।मुलायम सिंह यादव जी समाजवादी विचार धारा के थे तो वर्षो से महत्वहीन पदों पर बैठे अफ़सरों को मुख्यधारा में लाना चाहते थे । यहीं से शुरू हुआ जुगाड़ तंत्र और ट्रान्सफर पोस्टिंग का खेल।वर्षो से मलाई खाने वाले अफ़सरो का एक तबका येन केन प्रकारेण सत्ता में रहना चाहता था।ख़ैर ये तो हुई बड़े आदमियों की बड़ी बाते, अब मैं अपनी औकात पर आता हूँ बात हो रही थी बॉस के मूड की तो जुगाड़ तंत्र से मेरे विभाग में नए -नए मुखिया आये थे ,प्रमोटी आईएएस थे ।मतलब एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा। जैसा कि होता है उन्होंने आते ही सभी मातहत अफ़सरों की बैठक बुलाई ।तय समय पर हम सब मीटिंग हाल में जमा हो गये ।
साहब का एक घण्टे बाद आगमन हुआ और आते ही बोले, ” विलम्ब के लिए खेद है । मुख्यमंत्री जी सीधे बात हो रही थी फोन पर! “
हम सब तो सकपका गये और मैं सोचने लगा एक तो शेर ऊपर बंदूक लिए। तभी मेरे बगल में बैठे व्यवस्था अधिकारी ने चुपके
से एक पर्ची सरका दी , उसमे लिखा था , “फोन तो डेड है ये बात कैसे कर रहे थे?” ये बात लगभग सभी को मालूम थी कि फोन दो दिन से ख़राब है।उस ज़माने में चोगा वाले फोन होते थे अगर ख़राब हो गए तो समझो, तुरन्त तो नही ठीक होंगे।खैर परिचय का दौर शुरू हुआ । सबने अपना नाम ,पद और काम का परिचय दिया । मैंने भी बताया कि सरकार की ग्रामीण स्वच्छता योजना है जो प्रदेश सरकार की अगुवाई में भारत सरकार की गाइड लाइन ,वर्ल्ड बैंक,यूनिसेफ के सहयोग से चलाई जा रही मैं उस प्रोजेक्ट का मॉनिटरिंग हेड हूँ। बैठक में हमारे विभाग के मुखिया आईएएस थे बाकी सभी पीसीएस व्यवस्था अधिकारी और मैं ही विभागीय सेवा का था ।
परिचय के बाद साहब शोले के जेलर के अंदाज़ में शुरू हुए, “पहला वाक्य! अभी तक इस विभाग में जो होता आया है अब नही होगा मैं अफसर जरा हट के हूँ । “
फिर प्रवचन शुरू!,
जैसा कि लोग कहते है आदमी अपना पहला प्यार नही भूलता वैसे ही आईएएस अफ़सर कभी अपनी जिलाधिकारी की पोस्टिंग नही भूलता।उस समय क़रीब उनकी लगभग 30साल की नौकरी थी जिसमे वो केवल एक साल
जिलाधिकारी थे,पर पूरे दिन की बैठक केवल उसी पोस्टिंग के गुणगान में निकाल दी। उसके बाद दफ़्तर का निरीक्षण किया । किसी भी सेक्शन से वो ख़ुश नहीं दिखे । सबको कुछ न कुछ सुनाया
एक बाबू धीरे बड़बड़ाया , ” लगता है साहब आज बीबी से लड़के आये है। ” ख़ैर जैसा कहा जाता है फर्स्ट इम्प्रैशन इज़ द लास्ट इम्प्रैशन और हम सब अपने अपने मन मे उनकी एक जुगाड़ू अफसर की छवि ले के निकले। दूसरे दिन सुचारू रूप से कार्य शुरू हुआ साहब से जो मिलने जाता उसके अभिवादन का मुस्करा के ज़बाब देते और विस्तार से उसके काम और ज़िम्मेदारी की चर्चा करते।शाम तक आफिस में ये बात फैल गयी कि साहब बढ़िया आदमी हैं ।
साहब आते और सबके अभिवादन का मुस्करा कर जबाब देते।
सबकी नौकरी ढर्रे पर चलने लगी।
अगले सप्ताह साहब की सचिवालय में बैठक थी सबने अपने अपने पटल का ब्रीफनोट साहब को उपलब्ध करा दिया।
मीटिंग में साहब दफ़्तर न आकर सीधे बैठक में चले गये और सहायता के लिए अपने बाद के सबसे वरिष्ठ अधिकारी को बुला लिया।मीटिंग के बाद साहब दफ़्तर न आकर सीधे अपने घर चले गये।दूसरे दिन साहब
चेहरा तमतमाया हुआ था, किसी के अभिवादन का ज़वाब नहीं , सीधे अपने कमरे में,पूरा दफ्तर सन्नाटे में । धीरे से आकर उनके अर्दली ने बताया, “साहब लगता है आज मेम साहब से लड़कर आये ।सभी को डांट रहे है साहब से बच के रहना।आज उनका मूड ठीक नही है। “
उस समय दफ्तर में इण्टरकॉम होते थे लगभग एक घण्टे बाद एक- एक अफसर के नंबर घनघनाने लगे जो अधिकारी जाता कुछ समय बाद मुँह लटका के लौट आता ।
बकरी की अम्मा कब तक ख़ैर मनाती मेरी भी बारी आई मैं भी फ़ाइल दबाये पहुँच गया वो किसी से फोन पर बात कर रहे थे करीब 20 मिनट खड़ा रहा फिर बोले , “हाँ तू बता क्यो खड़ा है ।”
मैं कुछ नहीं बोला तो वे बोलें
“सालो ! तुमसे से कुछ नही होने वाला ।”
फिर वो वो सरकारी गालियां, धमकियां सुनी ,जिसमे कुछ तो पहली बार सुन रहा था ।,मुझे गलियों की चिंता नही थी चिंता इस बात की थी कोई सुन रहा होगा तो पूरे दफ़्तर में फैला देगा। शायद वो दिन मेरे लिए बहुत ख़राब दिन था । साहब हड़का ही रहे थे उनका ए सी बन्द हो गया तो उनका लहज़ा बदल गया ,बोले ,” देखो इसमें क्या हो गया ? “
मैंने कहा , “साहब !अभी व्यवस्थापक से बोलकर तुरन्त ठीक कराता हूँ ।”
तभी उनका चपरासी आया तार इधर उधर हिलाया और ए सी चल गया ।
फिर मेरे ऊपर पिल पड़े बोले , “तू काहे का इंजीनियर । झौआ भर वेतन लेता तुझसे अच्छा तो ये चपरासी है । चलो जाओ ।”
मैं भी धीरे से खिसका सोचा जान बची तो लाखों पाये!पूरा दिन तनाव में रहा शाम को उदास अपने इमीडियेट बॉस के पास गया जो पीसीएस थे । बहुत हँसमुख और सहयोगी थे, बोले ,”काहे मुँह लटकाए हो? बडे साहब से मिल आये हो क्या?।”
फिर मेरे साथ जो हुआ वो विस्तार से बताया तो वो जोर जोर से हँसने लगें बोले ,”बड़े साहब ने आज सबको जो गालियां दी वो आज खुद शासन से सुनकर आ रहे है।
तुम ऐसा करो अपने जूनियर को बुलाओ और मेरे सामने उसको वही गाली दो जो तुमको मिली है ।”
मैंने हीलाहवाली की तो डांटने लगे खैर मरता क्या न करता,मैने बुलाकर बिना उसकी गलती के डांटा और गरियाया।उसके जाने के बाद वो बोले,” कुछ हल्का महसूस हुआ?”
मैंने कहा जी,” सर ! बोले अब तुम्हारा जूनियर पूरे सेक्शन को ऐसे डांट रहा होगा।”
वो बोले ,”हर अफसर अपने अधीनस्थ के साथ वही व्यवहार करता है जो उसके साथ होता है।,
दफ़्तर की टेंशन कभी मत पालो ,
नौकरी का मतलब होता चाहे कुछ कर या ना कर बस ना मत कर।क्योकि जो साहब होते है वो न नही सुनते हाँ एक बात और गांठ बांध लो हाकिम का मिज़ाज पानी के बुलबुले जैसा होता,हम सबको बस उस बुलबुले के शान्त होने तक सयंमित होना पड़ता है।”
इति श्री हाकिम मिज़ाज कथा।