हिंदी दिवस और हिंदी

तेज प्रताप नारायण

सितम्बर आने वाला था ।हिंदी बहुत उदास थी ।

अंग्रेज़ी बोली “,सिस्टर ! क्यों उदास हो ? अब तो आपके ही चर्चे होने वाले हैं । ”
“सही कह रही हो बहन ! चर्चे तो होंगे लेकिन यही तो उदासी का कारण है !”
इंग्लिश के अचरज का ठिकाना नही था ।भला जब किसी की इज़्ज़त हो रही तो उसे क्यों उदास होना चाहिए ?

उसने हिंदी के कंधे पर हाथ रखा और बोली

” माय डिअर सिस्टर !ऐसा मत करो ।मेरे रहते तुम उदास रहो ।यह मेरे लिए शर्म की बात है ।”

” तुम कुछ नहीं कर सकती हो बहन ! उदासी का कारण यही समझ लो कि जो हिंदी दिवस के नाम पर किया जाता है उसमें मेरे लिए कुछ न होकर सिर्फ़ कागज़ी खाना पूर्ति होती है बस ।किसी का मुझसे कोई मतलब नहीं है । ”

“पर ऐसा कैसे सिस्टर ? सभी सरकारी कार्यालयों में हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है ।बड़े -बड़े पोस्टर लगाए जाते हैं ।तुम्हारे प्यार की कसमें खाई जाती हैं ।”

“हाथी के दाँत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ और होते हैं । अंग्रेज़ी बहन !”

“वह कैसे ? ” , अंग्रेज़ी आँखे बड़ी कर के बोली

“अब तुम्हीं बताओ ,अंग्रेज़ी बहन ! साल भर मेरे साथ सौतेला व्यवहार करके सिर्फ़ 15 दिन पखवाड़ा मनाने से मेरी सेहत कहाँ से सुधरेगी ।”

“हाँ ,यह तो है ।”,अंग्रेज़ी ने हाँ में हाँ मिलाई

“और पखवाड़े में भी राज भाषा विभाग के स्टाफ ,लोगों को बुला -बुला कर ले जाते हैं तभी लोग टंकण ,अनुवाद और निबन्ध आदि की प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं । अपने आप जाना लोग तौहीन समझते हैं या यूं कहें लोग जाना नहीं चाहते हैं । ” , हिंदी ने अपना दर्द बयान किया

“लेकिन सिस्टर ! सब मुझे बदनाम करते हैं कि अंग्रेज़ी ने हिंदी की बैंड बजाई ।जब कि ऐसा नहीं है ।” , अंग्रेज़ी दुखी होकर बोली

“तूम्हारी क्या ग़लती ? अब तुम्हें विश्व मे हर जगह लोग बोलते हैं ।तुम्हारे जानने वाले विश्व भर में हैं ।सारे वैज्ञानिक आविष्कार उन लोगों ने ही किए हैं तो तुम्हारी तो पूंछ होगी ही ।”

“बुरा न मानना सिस्टर ! इसमें तो कोई आश्चर्य नहीं है कि अधिकतर ज्ञान- विज्ञान की बातें इंग्लिश में ही हुई हैं ।सुई से लेकर हवाई जहाज और आज के कंप्यूटर इंटरनेट तक की शुरुआत अंग्रेजी में ही हुई ।जो भाषा रोज़गार की भाषा होगी लोग उसे ही पढ़ेंगे औऱ वही आगे बढ़ेगी ।”

“इंग्लिश की बात सुनकर हिंदी रोने लगी ।

इंग्लिश ने हिंदी को गले लगा लिया और
बोली ,” सिस्टर !निराश होने का कोई कारण नहीं है ।अब भी सब कुछ सम्भव है ।बशर्ते आपके बोलने वाले विज्ञान और वैज्ञानिकता के प्रति आस्थावान हो जाएं । सबके टैलेंट को आगे आने का मौका दें । जापान और रूस की ही लो क्या मेरी बहनें रूसी और जापानी प्रगति नहीं कर रही हैं ? उसका यही कारण है कि उनके बोलने वाले साइंस, टेक्नोलॉजी में आगे हैं ।आर्थिक रूप से सक्षम है ।”

“सच बात है बहन !लेकिन मेरे लोग ऐसा करेंगे इसमें मुझे संदेह है । आज भी इस देश के नेता कहते हैं कि बंदर को भगाना हो तो हनुमान चालीसा पढ़ो ,तो समझ सकती हो तुम ।”

“नेता को नहीं जनता को आगे आना होगा ,सिस्टर !”

“जी बहन !पता नहीं कब दिन बहुरेंगे ।”

अच्छा छोड़ो न सब सिस्टर !यह बताओ हिंदी कविता के क्या हाल हैं ? ”
“काफ़ी लोग लिख रहे हैं बहन ! फेसबुक ने बहुत लोगों को प्लेटफॉर्म दिया है । फ़िर भी कवि कविता पर आश्रित नही हो सकता है ।प्रकाशक उन्हें लूटते हैं सो अलग ।”
” राज भाषा पखवाड़ा तो है ?”
“वो तो है लेकिन इसमें कविता के नाम पर मिमिक्री और द्विअर्थी जोक्स ज़्यादा होते हैं ।” हिंदी फीकी हंसी में हँसते हुए बोली
“मतलब ,बेचारे कवि ! यहाँ भी मौका नहीं पाते हैं । ”
“ऐसा ही कुछ समझ लीजिए ,बहन !”, हिंन्दी धीरे से बोली

“अच्छा सिस्टर ! ये बताइये आजकल कुछ नई तरह की हिंदी भी शुरू हुई है क्या ? मसलन नई वाली हिंदी, बिंदी वाली हिंदी आदि आदि ।”
“अरे कुछ नहीं ।सब मार्केटिंग है और कुछ नहीं ।”
“ओह ! सिस्टर ,क्या हो रहा है सब । भाषा और बाज़ार के नाम पर ।”
“कुछ नहीं ।हिंदी के नाम पर कुछ लोगों का पेट भर जाता है लेकिन मैं भूखी सी रहती हूँ । बिल्कुल वैसे ही जैसे भगवान के नाम पर बिचौलिये अपनी तोंदे फुला लेते हैं और भक्त और भगवान दोनों भूखे रह जाते हैं ।”
“बड़ा बुरा हॉल है ।” अंग्रेज़ी संवेदना व्यक्त करते हए बोली

“हाँ बहन ,ठीक है मैं चलती हूँ । देखूँ कि इस बार हिंन्दी पखवाड़े में सरकारी कार्यालयों में कितना मुझे आगे बढ़ाया जाएगा ।देखती हूँ कुछ बदला ।या सब कुछ वैसे ही चल रहा है। अलविदा ।”
” बाई बाई सिस, आल द बेस्ट !!!”

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