बॉस की बेटी की शादी
दिनेश कुमार सिंह
एक पुरानी कहावत है हाकिम की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी,मतलब अफसर के सामने से और घोड़े के पिछवाड़े से जहाँ तक हो बचना चाहिए।बात 1994 की है हमारे विभाग के सबसे आला अधिकारी की बिटिया की शादी थी तो जैसा कि अमूमन सभी सरकारी विभागों में मख्खनबाज़ी प्रथा का चलन होता है तो विभाग के सभी अधिकारी जब भी मौका मिलता तो साहब की बिटिया की शादी की तैयारी के बारे जरूर पूछते और बिना मांगे चमचागिरी के वशीभूत होकर दांत निपोर कर कोई न कोई नेक सलाह साहब को जरूर देते।जैसे सभी बेटी के पिता उसकी शादी को लेकर परेशान होते है वैसे ही साहब भी सबसे हाथ जोड़कर कहते भाई बिटिया की शादी आप सबका सहयोग तो चाहिए ही और जैसे ही शादी को लेकर साहब के चेहरे चिन्ता के भाव आते और भावनाओं में बहने लगते तभी वो अफसर एक दो फंसी फाइल साहब के आगे कर देता और साहब भी उस पर बिना पूछे जांचे चिड़िया बैठा देते और अफसर से बस इतना कहते आपने ठीक से देख लिया है ना उसके बाद वो अफसर कुटिल मुश्कान के साथ साहब के कमरे से निकल जाता।
बिटिया की शादी में लगभग एक महीना था और विभाग के सभी अफसरों ने साहब की दुखती रग पकड़ ली थी और सब अपनी फंसी हुई फ़ाइल आसानी से पास करा रहे थे।सब जाते साहब को कोई न कोई सलाह देते और फ़ाइल पर चिड़िया बैठवाते चलते बनते।मैं भी अफसर था पर सबसे कनिष्ठ था और मेरी कोई भी फ़ाइल साहब के पास सीधे नही जाती थी और उम्र भी कम थी तो शादी में तो कोई सलाह भी नही दे सकता था मेरी भी कुछ फाइलो पर मेरे वरिष्ठ अधिकारी कुंडली मारे बैठे थे पर मैं कुछ नही कर सकता था।वैसे जब कोई इंजीनियर आईएएस और पीसीएस अफसरों के साथ काम करता है तो उसे बत्तीसी के अंदर जीभ की तरह रहना पड़ता है काम की जुम्मेदारी और जबाब देही पूरी निर्णय की क्षमता न आधी न अधूरी।
खैर शादी के ठीक दस दिन पहले साहब ने सभी अफसरों को चाय पर अपने बंगले में बुलाया।सब अपनी अपनी डायरी लिए निश्चित समय पर हाज़िर हुए मैं भी एक कोने में जाकर बैठ गया।साहब आये और बोले बिटिया के शादी के अब कुछ दिन बचे है और अपनी जेब से एक पर्ची निकाली और एक अधिकारी तरफ मुखातिब होकर बोले तुमने कहा था अंबाला के पास कोई रजपुरा है वहाँ सोफे और फर्नीचर बहुत बढ़िया मिलते है तुम ऐसा करो मेरे पीए से लिस्ट ले लो और तुम अपने स्तर से देख लो और हाँ जो बातो बातो मुझसे फ़ाइल करा लें गए थे उस ठेकेदार का भुगतान तो हो गया होगा अब जी साहब के अलावा उनके पास कोई चारा नही था, फिर दूसरे से बोले तुम क्या बता रहे थे कि कौन सी नई कार आई है हाँ मारुती की तुम वो देख लेना तुम लोगो के होते बिटिया बिना गाड़ी के ससुराल जाय क्या अच्छा लगेगा?हाँ तुम अपनी प्रमोशन वाली फ़ाइल भी शादी के बाद करा लेना अब इनके पास भी जी साहब कहने के अलावा कोई चारा नही था।साहब लिस्ट पढ़ते जाते और जिस अफसर ने जो सुझाव दिया था वो उसके जुम्मे करते जाते।फिर क्या था टीवी,फ्रिज, अलमारी, मिठाई,हलवाई,खाने का मेनू, टेंट ,स्वागत,विदाई जिसने जो सलाह दी उसके अनुसार बाट दिया और फाइलों की भी याद दिला दी।फिर एकदम आखिर में मुझे कूड़ेदान की तरह घूरते हुए कहा इंजीनियर साहब तुम कुछ नही बोले तो मैंने डरते हुआ कहा साहब हम ऐसा करते है कि जनवासे से लेकर विवाह स्थल तक पानी छिड़कवा के फॉगिंग करा देंगे और पूरे रास्ते मे चुना डलवा देंगे साहब बोले वाह बहुत बढ़िया ये सलाह तो किसी ने दी ही नही।बैठक खत्म हुई सब मुँह लटका के बाहर निकले और अपनी अपनी गाड़ियों में बैठकर निकल गये जैसे किसी को जानते नही आखिर करते क्या? सबकी पोल जो खुल गयी थी।
दूसरे दिन आफिस में कोई चहल पहल नही सब शादी के समान की तैयारी को लेकर ठेकेदारों,सप्लायरों, कमाई वाले पदों पर बैठे बाबुओं को हिलाने डुलाने में लगे थे।हम अपना लंच फर्नीचर वाले साहब मलतब जो मेरे इमीडिएट बॉस थे उनके साथ करता था लंच में वो बोले तुम्हारी तो कोई फ़ाइल नही थी तो तुम काहे ये टंटा मोल ले लिए!मैने कहा साहब की बिटिया की शादी है मुझे कुछ न कुछ तो करना ही था ,मैंने उन्ही के फोन से
नगर निगम के सहायक अभियंता जो मेरा मित्र भी था को फोन करके बताया कि हमारे फलां साहब की बिटिया की शादी है तारीख और जगह लिख लो ठीक तरह से फागिंग, पानी का छिड़काव कराके चूना डलवा देना।अगर भूल गये तो तुम्हारी व्यक्तिगति पत्रावली तलब हो सकती है।फर्नीचर वाले साहब हँसने लगे बोले, हर्र न फिटकरी रंग चोखा!मैंने उनका मूड देखकर कहा साहब इंजीनियर हूँ कोई पीसीएस थोड़े अब पता नही उनको अच्छा लगा या बुरा?
क्योकि कि वो अम्बाला में किसी फर्नीचर वाले को फोन लगाने में व्यस्त थे।
इति श्री सरकारी ऑफिस कथा।